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Save Humanity to Save Earth" - Read More Here


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Saturday, December 29, 2012

तम गहनतम हैं।

तम आज, गहनतम हैं।
स्तब्ध आम जन हैं।
हौसले अभी टूटे तो नहीं,
हर आंख लेकिन नम हैं।

वो जो उसका राजा हैं।
अपना फ़र्ज़ भूल बैठा हैं।
आंखे, कर्ण बंद किये।
अपनी प्रजा से ऐंठा हैं।

क्या करे आमजन?
बैचैन और उदास हैं।
चल घर से निकलते हैं।
पास के नुक्कड़ पे पहुचते हैं।
दो और मिलेंगे , चार बनेंगे 
वहा राजपथ चलेंगे।
ले हाथो में हाथ चलेंगे।
दिए से दिया जलाएंगे।
तेरे मेरे उसके, जख्म सहलायेंगे।
भरोसा दिलाएंगे एकदूसरे को।
कि रखेंगे मानवता जिन्दा।
और इस आग को।
जो वो अपना जिस्म जला देके गई हैं।
और इसी आग से हरेंगे,
हर तम को।
कहेंगे सत्ता से।
या तो बदलो।
या हो जाओ, बेमानी होने को अभिशप्त।
बदलाव अब चाहिए। 
घर से दिल्ली तक।
मन से दिल तक।
मुझसे तुझ तक।
प्रजा से राजा तक।
दे साथी अब ये वचन हैं।

तम आज गहनतम हैं।
स्तब्ध आम जन हैं।
हौसले अभी टूटे तो नहीं,
हर आंख लेकिन नम हैं।

Sunday, December 23, 2012

जनता आती हैं.

आजादी और लाल बहादुर शाश्त्री के बाद, हर आन्दोलन, हर विरोध को एक नाम दे देकर राजिनितक मेनेजरो  ने अपनों आकाओ को बहला कर, जनता को मुर्ख समझा और मुख्य धारा की सवेंद्शिलता, सामाजिकता और जमीनी सौद्श्यता की जननीति को लल्लो चप्पी की राजनीती से बदल दिया। कभी जे पी का नाम दिया, और अभी अभी अन्ना , फिर रामदेव औरफिर अरविन्द केजरीवाल का नाम दे दिया। तो जनता का आन्दोलन अरविन्द का बन गया, अन्ना का बन गया। फिर सभी स्विस अकाउंट धारक मीडिया में आये, और कहा जनता ही हिसाब करेगी, अरविन्द और अन्ना कौन होते हैं। अरे वाह : इस रामबाण ने काम   किया, और चाटुकारों (राजनैतिक मैनेजर ) को प्रमोशन मिला। ये अलग बात हैं, वो रामबाण, हमेशा की तरह जनता को लगा। लेकिन साहब क्या करे, कल ऑफिस जाना हैं , बीवी बच्चो का पेट भरना हैं, नेता - भू माफिया ने जो 1000 स्क्वायर फीट के सर छुपाने की जगह को, सपना बना कर, सपना, आसमानी कीमतों पर बेचा, उसे अपने कॉमन सेंस को अलग रख, ख़रीदा और फिर शुरु हुआ मासिक किस्तों का दौर। सड़के नहीं बनी, कोई बात नहीं। 20 साल से मेरे गाँव में बिजली 4-6 घंटे मिलती हैं, कोई बात नहीं, 30,000 किसान आत्महत्या करते हैं, तो क्या। कोई युवा किसान अपने हाथो से केले की अपनी फसल को मंडी में 2-3 रुपये किलो  ने बिकते देख, नष्ट कर देता हैं, तो क्या। और फिर हमारे नेताओ की असीम भूख पैसो की, भ्रष्टाचार के बारे में अब और क्या ससबुतन देखे? मुझे कोई बता रहा था, एक प्रदेश का सीऍम सीधे RTO पोस्टिंग के लिए पैसा लेता हैं। और फिर सिस्टम को इतना लकवा ग्रस्त कर दो की, बिना पैसो के काम  न हो, तो अब जनता भी भ्रष्टाचारी, तो कैसे कोई कांच के घर वाला पत्थर मारेगा ? इसे तिल तिल के मारना कहते हैं , जनाब 
 
 कोई सरोकार ही नहीं रहा इन लोगो को। तुम कल मरते हो , आज मरो। और मौन मोहक जी उवाच करेंगे, अब ऐसा न हो। कल फिर होगा, फिर वही, अब ऐसा न हो। भारत भाग्य विधाता, जो हुआ उसका हिसाब किताब कौन देगा? आप अर्थशाष्त्री हो ना? एकाउंट्स और एकाउंटेबिलिटी समझते  है ना? हम उसी के बारे में बात कर रहे है, सर।
पर आपको एक नया ज्ञान समझाया गया, बहुदलीय सत्ता की मजबूरी की राजनीती। अब आप तो राजनीती समझते नहीं, इसलिए जैसा सिखाया गया, आपने सच समझ लिया। श्रीमान हम इसे blackmail की सत्तानिती कहते हैं। आप किसी भी दलाल को, क्योकि वो दारू की बोतल बाट कर, तथाकथित रूप से चुन कर आया, इसलिए सपोर्ट ले लेते हो, बल्कि उचे पद भी बात देते हो, अब उनसे हम तो छोड़े, आप कोई उम्मीद रखते हो?
इसलिए जनता ने इसबार उलटवार किया। ठीक हैं साहब, आप कोई नाम नहीं चाहते, कोई बात नहीं। इस बार हम बेनाम आयेंगे। बूढ़े, लाचार हैं, आप परवाह नहीं करते। कोई बात नहीं। नौकरीपेशा मासिक क़िस्त से झुके हुए, टूटे हुए हैं और चतुर (श्याना / cunning ) बन गए हैं। कोई बात नहीं। रही बात नए खून की, हा इससे खतरा हैं। चलो इन्हें पब दे दो, मस्ती मंत्र दे दो, कूल dude बना दो।, फेसबुक, ट्विटर दे दो। lol करते रहेंगे। फेसबुक में कोई dislilke (नापसंद) तो होता नहीं। बस यही गलती हो गई साहब, बस यही वाट लग गई। 
मैं अपने दोस्तों से हमेशा कहता हूँ, गर उम्मिदे जिंदा हैं तो यही नया खून कुछ करेगा, हालाकि थोडा निराश था, की कही ये युवा, मस्ती मंत्र में उलझ कर न रह जाये।
लेकिन साहब, नया खून और मासुमता तो जोर मारेंगे। वो घर नहीं बैठेंगे, वो अगर ट्विट करते हैं तो ट्रेन्ड भी देखते हैं। वो ज्यादा गुणाभाग नहीं करते। सच तो सच, वरना गलत। कोई किसी कॉर्पोरेट का, सिविल सर्विस का,  ंMBA का इंटरव्यू  हैं क्या? जो लेदेकर बैलेंस नजरिये को लादेंगे। नहीं साहब, नहीं। बहुत हो गया ब्रेन वाश।
    
तो साहब इस बार राजपथ पर, विजय चोक पर और इंडिया गेट पर युवा आया (सिर्फ उम्र से नहीं), जनता आई। आप कहते हैं न संसद में, बड़ी चालाकी से, की "जनता तय करेंगी"। और शब्दों के बीच आप ये कहना चाहते की, जनता को तो हम मैनेज कर लेंगे चुनावो में। इस बहुत बड़े देश में, बहुत मुद्दे हे यार, जाति के , धर्म के, आरक्षण का। बाट देंगे। सफ़ेद अंग्रेज सिखा  कर गए ही  हैं।  
तो लो साहब, जनता आ गई। बगेर कोई नाम लिए, चाहे छोटा भाई बहन खड़ा हो पास में, नहीं बताएँगे, नहीं तो आप हमारा परिवारवाद का  आरोप हम पर ही लाद  देंगे। नहीं, ये जनता हैं, वही जिसे आप अपना मालिक कहते हैं। और इस बार कोई नाम नहीं। आपको कोई चेहरा नहीं चाहिए न? लो कोई चेहरा नहीं। 
और न होने, का चमत्कार देखिये। सारे राजनैतिक मेनेजर, गधे के सिंग की तरह गायब हो गए। सीधे जो निर्णय ले सकता हैं, अब उसी से बात। 

लेकिन हुक्मरान फिर गलती करेंगे, वो इसे सिर्फ इस ज्वलंत मुद्दे से जोड़ेंगे। उन्हें समझना होगा, बात समग्र होनी चाहिए। अब और मत देरी करो। अब और आँखों की चमक को खोने मत दो। आपको इस देश का लीडर बनना होगा, मेनेजर नहीं। जो ट्रस्ट डेफिसिट आपने पैदा किया हैं, उसे वापस लाना होगा। अब सर्दी की सिरप  नहीं, कैंसर की सर्जरी चाहिए। सब कुछ सड़ांध हो मर रहा हैं। गर ये समझे तो ये जनता आपको अवसर देगी अपने प्रतिनिधत्व का। नहीं तो असामयिक कर देगी आपको। अंडर करंट बहुत तेज हैं, और आंखे मूंदकर आप धृतराष्ट्र तो बन सकते हैं, लेकिन भारत नहीं जीत सकते, महाभारत नहीं जीत सकते। इस महाभारत में दो ही पक्ष हैं। आप बताये, और हर किसी को तय करना होगा, आप किस तरफ हैं। नहीं तो पडोसी के बाद आपकी बारी भी आएगी। आप बैठ कर, निष्पक्ष हो कर, अपने आपको को नपुंसक ही साबित करोंगे। आपकी पीढ़िया आपसे वही सवाल करेंगी, जो देश आज हुक्मरानों से कर रहा हैं।

दिनकर साहब ने अपने गरम खून से लिखा हैं:

मिटटी सोने का ताज पहन, इठलाती हैं।
सिंहासन खाली  करो, कि जनता आती हैं।

--एक आम आदमी।

Monday, October 15, 2012

वक्त

वक्त के पन्ने उड़ते जाते हैं.
जो लिखे नहीं, खाली रह जाते हैं.
वक्त के पन्ने उड़ते जाते हैं.

आंधीया तो गुजरी हैं, मेरे भी घर से.
कुछ चिराग हैं, फिर भी जले रह जाते हैं.
वक्त के पन्ने उड़ते........

मैने तो कुछ पन्ने सिर्फ काले किये.
वो खुदा ही हैं, जो कुछ कह जाते हैं.
वक्त के पन्ने उड़ते........

बड़ी मुद्दत के बाद ये यकीं हुआ हैं.
पराये शहर में, अपने भी मिल जाते हैं.
वक्त के पन्ने उड़ते........

यु ही फिर, जिन्दंगी की किताब पूरी होती जाती हैं.
कुछ पन्ने लेकिन गुलाब रख, खाली भी छोड़े जाते हैं. 
वक्त के पन्ने उड़ते........

और शब्दों  में तुम किताबो के मायने देख,  चुक न जाना.
तथागत, गंध अपनी, कोरे पन्ने पे छोड़ जाते हैं.
वक्त के पन्ने उड़ते........

तुझसे इश्क करू या रंजो गम करू ए जिन्दंगी.
कुछ रिश्ते, अजनबी बन भी निभाए जाते हैं.

वक्त के पन्ने उड़ते जाते हैं.
जो लिखे नहीं, खाली रह जाते हैं.
वक्त के पन्ने उड़ते जाते हैं....


आज इतना ही.
राहुल 

Friday, September 14, 2012

प्रार्थना


रीते शब्द और अर्थ. मटका और पानी. शरीर और आत्मा. फर्क साफ़ हैं और वही फर्क वजह हैं आज के कोलाहल की. एक प्रार्थना और एक शब्दों का खेल..यही फर्क हैं, आज विश्वास हिन् समाज के विघटन का. शब्द जब आत्मा से मिलते हैं तो बनती हैं प्रार्थना, रीते शब्द सिर्फ प्रदुषण बन के रह जाते हैं. एक वो जमाना था, जहा "प्राण जाये पर वचन न जाये" की बात थी. आज सौदे का जमाना हैं और हर चीज की कीमत तय हैं.. शब्द अब रीते हो चुके, आँखों के पानी से. एक खोखलापन और इसे "हर पल जीना" कह के फेसन में लाया जा रहा हैं...
खैर. समय को भोगना ही हैं. तो अपने तरीके से ही जिया जाये. कोई कह गया हैं, "जो तुम्हे बुरा कहे वो खुद बुरा हैं"..इसीलिए फ़िक्र सिर्फ इतनी हो की, हम अपने करीब पहुच रहे हैं या नहीं. क्योकि सारी दौड़ सुना हैं दूर ही ले जाती हैं.:
"हम युही वीराने में अनमने से बैठे हैं,
खबर ये हैं की, बस्ती में हर कोई दौड़ रहा हैं."

आज बेटी के साथ बैठ एक प्रार्थना गानी और सिखानी थी..और क्या याद आता "इतनी शक्ति हमें देना दाता" के सिवा?
कितनी आत्मीय, कितनी प्रेम भरी प्रार्थना!. ऐसा लिखना और सोचना तो दूभर हो ही चूका हैं, क्या हम इस प्रार्थना करने के काबिल भी रह गए हैं?..
चलिए आज हिंदी दिवस पर सुन तो लेते ही हैं.
****************************************************
हम ना सोचे हमें क्या मिला है 
हम यह सोचे किया क्या है अर्पण ,
फूल खुशियों के बाटें सभी को 
सबका जीवन ही बन जाये मधुबन 
अपनी करुना का जल तू बहा दे 
कर दे पावन हर इक मनं का कोना 
हम चले नेक रस्ते पे हमसे 
भूल कर भी कोई भूल हो ना 
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास.... 


Thursday, July 26, 2012

My Letter to all Media Houses

Dear Sir/Madam,


I respect your rights to telecast what People of India, can consume as news content and so I do not raise any voice if show some PROGRAM on Nirmal Baba or astrology BABA or Movie Stars, but if you consider yourself FORTH pillar of Democracy as MEDIA, I feel you have a responsibility to show MIRROR to everybody, unbiased. 


On this ground, I would request you to cover rationally the Movement against Corruption, which you have covered time to time and exposed many faces. 


These people, like Arvind Kejriwal are not Psycho, they are well educated from highest Institution of India like IIT and shown their capability by passing one of highest and toughest examination of India that is IAS, I am sure, you are pretty aware of it and this means when they are on SATYAGRAH without eating anything, threatening to their own life, means THERE IS SOMETHING VERY SERIOUSLY WRONG WITH OUR SYSTEM. What is wrong, I think you are well aware and better equipped to know more than me. 


So taking a small step will decide, what message we want to give to our coming generations and what kind of SYSTEM we want to give them.


You all guys are pretty smart and full of wisdom so can take a call, being a citizen of this Country, I want to give CLEAN and Better India, and a India which is full of equal opportunity to my generations, and that is why thought to write you about this.


Please think and if your consciousness allow, ACT, act unbiased! 


Note: I have sent this letter to their email ids in the spirit of being the responsible citizen of India!

Sunday, June 17, 2012

पिक्चर अभी बाकि हैं मेरे दोस्त...

एक पल में जिन्दगी बदलने की ताकत होती हैं. हमारी जिन्दगी अगले पलो में कैसी होगी, चलिए देखते हैं... जिन्दगी का ड्रामा अनवरत गतिमान हैं...

कहते हैं जिन्दगी में कही कोई मंजील नहीं हैं, वरन जिन्दंगी सफ़र का नाम हैं. सुना यह भी हैं कि भगवान जिंदगी रहते, इसीलिए कभी किसी को नहीं मिलता, क्योकि मिल जाये तो फिर क्या? फिर अगले पल का क्या उपयोग? रविंद्रनाथ ने इस पर बहुत खुबसूरत लिखा हैं, बन्दे कि नेक नियत से खुश हो ईश्वर ने उसे अपने पास बुलाया. वो पहुच भी गया द्वार तक, पर दस्तक देने से पहले सिहर गया. पूरी उम्र जिसकी चाहत में गुजरी, वो मिल जाये, फिर क्या? वो लौट आया, और अवाम से वहा पहुचने का रास्ता बताने लगा. शायद बुद्ध भी इसीलिए आये. 

शायद इसीलिए कहते की समाधि और ध्यान एक शाश्वत अ-समय और अ-स्थान अनुभव हैं. उस पल आप ब्रम्हांड से एकाकार हैं. फिर कोई यात्रा नहीं. फिर कोई नया सफ़र नहीं. फिर कोई दर्द नहीं, फिर कोई शायद ख़ुशी भी नहीं.

तो अगर कोई ख्वाहिश बाकि हैं, अगर कोई आरजू दिल में धड़कती हैं, अगर कुछ और पाना हैं,  तो फिर जिन्दगी का सफ़र जारी हैं. पिक्चर अभी बाकि हैं मेरे दोस्त...:-)

Love 
Rahul

Sunday, May 13, 2012

Be the change you want to see!

Every day on Face book we share Nice messages, motivational quotes, Morale Value lectures apart from Which undergarments we wore today, what we eat n drink, with which celebrity we has a pose with, office cabin photo with some whiteman etc....Its Okay..Nothing bad/wrong, its social sites..But then lets do not share Values and principles we ourselves do not follow. Or if we share them Lets follow them..
5 months have passed, and I am still not able to decide my new year resolution. I decided few days back.."ACT NOW"..Act now on MORALE values we follow, I follow, as my resolution. 
Everyday ACT on something which we like from bottom of the heart..Act against Injustice we face everyday. Change ourselves everyday..Be what we want other to be..
You know I like YOUNG blood, young generations now, they are quite fresh, innocent and not burdened and garbaged with these impotent morale values. They listen to us carefully as they are still blank. All so called Experienced people do not listen, they just pauses in between vomit. 
But young seeds are different. If something they find honest and correct, they ACT. They help their friends. They care each other. and lets recall we were also the same in that age..Isn't it? All this professionalism just made us mad for money and cunning..Mind you not WISE, I am saying Cunning..We became a caricature of ourselves..And this way we can not change ourselves and so this World! and I foresee that Both are getting close to one destination i.e. death..
Wake up Seed..Everyday post about what you ACTED upon rather than morale lectures..Lets make the difference..A different you only can make the difference! Do not think who else is doing it with you or not, if you and me, other will also come, because then the voice of soul will be louder to them.. 
I started! Dropped a mail to President of India regarding poor situations of farmers! Pick up a issue from around, think on that, brainstorm it and then lets chase it!

Thursday, May 10, 2012

कुछ कहना चाहता हूँ....

इससे पहले की मैं ग़ुम हो जाऊ.
दूर कही अस्मां में खो जाऊ.
खट्टी मीठी यांदे बन जाऊ.
और अकेले में रुला जाऊ.
इससे पहले कि राख हो जाऊ.
मिटटी में मिल खाक हो जाऊ.
इससे पहले कि अहसास बन जाऊ.
उन लम्हों कि साँस बन जाऊ.
इससे पहले कि कोई छीन ले.
इससे पहले कि यम मुझे भी गिन ले.
इससे पहले कि आंसू बन जाऊ.
खारा पानी बन ढल जाऊ.
इससे पहले कि कहानी बन जाऊ.
किस्सों बातो में याद आऊ..

कुछ कहना चाहता हूँ.
कह नहीं पाता हूँ.
शब्द औकात पर आ जाते हैं.
कम पड़ जाते हैं.
आंसुओ से काम चलाता हूँ.
बाहर मुस्करा के, भीतर कसक दबाता हूँ.
मेरी बेरुखी पर मत जाना, वक्त ने दी हैं.
अन्दर से वही हूँ, बस चमड़ी सख्त कर दी हैं.
और माफ़ी मांगता हूँ उन पलो कि लिए,
जीवन की आपा धापी में तुम्हे जो दे नहीं पाया.
और आज कहना चाहता हूँ, जो कह नहीं पाया.
उन सभी से जिन्होंने, दिया हैं प्यार मुझे.
अनजाने ही बिना कोई गणना किये...
कुछ बहुत दूर चले गए.
असमा मे तारे बन गए.
भीनी सी जिनकी सुगंध अभी भी आती हैं.
कुछ मेरे आस पास हैं.
जीवन का अहसास हैं.
ये कोई मोल  नहीं करते हैं.
क्या मिलेगा, तोल नहीं करते हैं.
निराश जब होता हूँ, तथाकतिथ इंसानों से जब,
खुदा से भी भरोसा उठ जाता हैं.
जीने की वजह, बेटी का चेहरा बन आता हैं.
सभी से, हा इन सभी से.
कहने दो आज मुझे.
कि मै भी उन्हें याद करता हूँ
अकेले मे अक्सर रो भी लेता हूँ.
नम आँखों से कहता हूँ,
मै भी तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ.
नम आँखों से कहता हूँ,....मै भी तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ..

Sunday, April 29, 2012

बसंत के मायने: तब और अब.

बसंत के मायने क्या वक्त और स्थान बदल देता हैं? कभी किसी मासूम  उम्र में, फूलों की सुवास प्रिय से आती लगती हैं., और अब पतझड़ की चिंता उस सुगंध  को आत्मा तक नहीं पहुचने देती, और टेसू के फूल का रंग, परिस्थितियों से संघर्ष और उससे उपजी बेबसी से बरसते खून के आंसू से सुर्ख लाल प्रतीत होता हैं..इंसानों में रीतता आँखों का पानी और गिरता जल स्तर, कही कोई सम्बन्ध हैं? पता नहीं. आज व्यवस्था बहुत बड़ी हो चुकी हैं, और इन्सान अदना. व्यवस्था भूल गयी कि उसे इस सामान्य इन्सान के लिए ही बनाया गया हैं, और नियमो के निम्नतर अर्थो  में उलझी हैं. वही अदने इन्सान ने भी वक्त के साथ अपने वजूद को बेच पेट भरने का निश्चय कर लिया हैं. दोनों अपना अर्थ खो रहे हैं, और किसी बोस, सरदार, गाँधी का इंतजार व्यर्थ हैं, क्योकि उन्हें आँखों के पानी वाले इन्सान मिले थे. निराश तो हूँ, लेकिन क्या करू, ब्लड ग्रुप बी+ मिला हैं, तो खून के साथ न्याय जरूर करूँगा. मेरी अदनी सी कोशिश और प्रयोग जारी हैं, पिछले बरस "सच बोलने का प्रण लिया था", और बहुत जूते पड़े थे. Dell कार्नेगी आज भी मौंजू हैं (तारीफ करो और काम निकालो)  और सत्य पराजित. क्योकि सत्य आज outdated हैं, ओल्ड fashioned हैं, झूठ और फरेब, आज के नए बिज़नस मंत्रा हैं. हर कोई एक दुसरे को गंजा समझ, कंघा बेचने में, अपना सब कुछ बेच चूका हैं जो अमूल्य था और सिकन्दर को भूल गया हैं, जिसने अपनी अंतिम यात्रा मैं, खाली हाथ बाहर रखवाए थे...जब सिकंदर भी खाली हाथ गया......तो ....
खैर वक्त के उस दौर कि कुछ पंक्तिया याद आ रही थी, तो सोचा इस मौन को तोडा जाये, जो मेरी इस बरस का प्रण हैं. मौन, लेकिन सार्थक मौन, ख़ामोशी नहीं जो इस देश के सरदार ने अख्तियार कर बेडागर्क  कर दिया हैं. और एक अधेड़ होता इन्सान जिसके पास  देश को परिवर्तित  का पॉवर हैं, किन्तु अपने को किसी प्रदेश  में साबित करने के अपनी जिद के पीछे , देश का इतना मूल्यवान समय जाया कर रहा हैं. 

खैर..अब उस बसंत को याद किया जाये, जब जमाना, पैरो कि ठोकर पे रहता था..और हम, हम आसमां में.:-)
_____________प्यार एक मौन.____________________________________________
हर पल तेरी यांदो का साया साथ हैं.
करू भले ही इंकार, लेकिन कुछ  बात हैं.
वरना क्यों हो जाता हूँ खामोश मैं, भरी महफ़िल में?
जब तेरा नाम किसी के लब से निकलता हैं.
वरना क्यों जब राह में, नहीं होता हैं तेरा साथ.
तो राह में पड़े पत्थरो, मैं पैरो से मारता चलता हूँ.
वरना क्यों, जब तू आती हैं सामने
तो ये दिल जोरो से धडकता हैं.
करना तो चाहता हूँ, हजारो बातें.
पर एक शब्द तक नहीं निकलता हैं.
कुछ बात हैं, हा जरूर कुछ बात हैं.
शब्द जिसे नहीं कर सकते अभिव्यक्त, वो ऐसी कुछ खास हैं.
शायद मौन ही उसकी अभिव्यक्ति का उपाय भला हैं.
जिसे हम-तुम ने प्यार नाम दिया हैं...
जिसे हम-तुम ने प्यार नाम दिया हैं............

आज इतना ही.