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Sunday, June 23, 2019

सपना झरना नींद का.

मेरे खेत, पहाड़, नदी
मुझे समाजवादी बनाये रखते है
नदी जिसका मिनरल पानी
सब पीते थे
सब जीते थे
सब स्वस्थ थे
तन से , मन से।

पहाड़ जो सभी को
आसरा देता था
पानी सहेजता था
फिर धीमे धीमे
बाट देता था
बिना किसी इश्तेहार
और सरकारी योजना के।

मेरे खेत जो देते थे
विषरहित देसी अनाज और सब्जी
जिन्हे छीनकर मुझसे
आज नेचुरल के नाम पर
चौगने दामों पर बेचा जा रहा है।
मेरे खेत जो आज भी
मेरी तिजोरी नहीं भर पाते
पर आत्मा और शरीर को तृप्त करते थे।


मै फिर भी कैपिटलिस्ट बना हूँ
इसीलिए नहीं की वो परफेक्ट सिस्टम है
या कि वो योग्यता के आधार पर तिजोरी भरता है
या कि वो पहले सप्लाई कम करता है
या  कि वो पहले अच्छी आदते भुलाता है
या कि वो नयी बीमारिया ईजाद करता है
या कि वो पहले तोड़ता है फिर ख्वाब बेचता है ,
बल्कि इसलिए कि समाजवाद के ख्वाब देखने के लिए
मेरा भर पेट खा मखमली बिस्तर पर सोना जरूरी है।

मेरे खेत , पहाड़, नदी
मुझे मरने नहीं देते
सिस्टम की लसकती भुखमरी वासना
मुझे जीने नहीं देती।

लेकिन मेरे ख्वाब, जिसमे समाजवाद तितली की तरह लुभाता है ?
वो क्या है ?
शायद किसी और संसार में 
किसी तितली का स्वप्न है
जिसमे वो मुझे देख रही है।

- Rahul Paliwal