स्तब्ध आम जन हैं।
हौसले अभी टूटे तो नहीं,
हर आंख लेकिन नम हैं।
वो जो उसका राजा हैं।
अपना फ़र्ज़ भूल बैठा हैं।
आंखे, कर्ण बंद किये।
अपनी प्रजा से ऐंठा हैं।
क्या करे आमजन?
बैचैन और उदास हैं।
चल घर से निकलते हैं।
पास के नुक्कड़ पे पहुचते हैं।
दो और मिलेंगे , चार बनेंगे
वहा राजपथ चलेंगे।
ले हाथो में हाथ चलेंगे।
दिए से दिया जलाएंगे।
तेरे मेरे उसके, जख्म सहलायेंगे।
भरोसा दिलाएंगे एकदूसरे को।
कि रखेंगे मानवता जिन्दा।
और इस आग को।
जो वो अपना जिस्म जला देके गई हैं।
और इसी आग से हरेंगे,
हर तम को।
कहेंगे सत्ता से।
या तो बदलो।
या हो जाओ, बेमानी होने को अभिशप्त।
बदलाव अब चाहिए।
घर से दिल्ली तक।
मन से दिल तक।
मुझसे तुझ तक।
प्रजा से राजा तक।
दे साथी अब ये वचन हैं।
तम आज गहनतम हैं।
स्तब्ध आम जन हैं।
हौसले अभी टूटे तो नहीं,
हर आंख लेकिन नम हैं।
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