बेटियाँ जिद्दी होती ही हैं।
हर पिता के लिए।
क्योकि वही तो वे कर सकती हैं जिद।
और उसे पूरी भी।
और जब तुतला के वो गर माँगती भी है सितारे।
कोई पिता असमर्थ नहीं होता।
फड़फड़ाने देता हैं बेटी को अपने पंख।
ताकि ऊची उड़ान भर सके।
खुद जाके अपना आसमान ले आये।
फिर एक दिन, चिड़िया उड जाये।
किसी नए आसमान की तलाश में।
पिता जानता हैं।
बेटी की जिद।
जिद नहीं होती।
हौसलों की उड़ान होती हैं।
और बेटी जानती हैं।
उसकी जिद पूरी करना।
पापा का तरीका हैं।
प्यार जताने का।
कुछ रिश्ते ऐसे होते ही हैं।
जिन्हे शब्दों में पिरोया नहीं जाता।
बस, गले लगाया जाता हैं।
बेटियाँ जिद्दी होती ही हैं।
हर पिता के लिए।
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