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Saturday, March 7, 2015

ऐ जिन्दंगी !

कहा चली गई तुम।
बड़ी शिद्दत से ढूंढता हूँ तुम्हे।
हर पल याद करता हूँ।
रोता हूँ।

जब साथ थी तुम।
आँखों में तारे।
होंठो पे मुस्कान।
दिल में अरमान थे।
कस के पकड़े था, में तुम्हे।
हर दुःख सह लेता था।

ऐ जिंदगी।
फिर लौट आओ।
फिर जिएंगे तुम्हे।
जो जीने लायक हैं।
चलेंगे साथ साथ।
बैंठेंगे फिर किसी आम के निचे।
कच्चा खट्टी कैरी , नमक लगाके फिर खाएंगे।
नहायेंगे फिर से उसी नदी में।
चलेंगे फिर शाम को किसी मंदिर।
बजायेंगे घंटिया, प्रसाद खाने के लिए।
खेतो में दौड़ेंगे।
भागेंगे तितलियों के पीछे।
एक तेरी वाली , एक वो पिली सी , मेरी वाली।
सोयेंगे खुली छत पर।
गर्मियों में उन , ठंडे से बिस्तरों पर।
लौट मारते हुए।
और हर रात , हर बच्चे को शंहंशाह बना देती हैं।
अपने सारे तारे मोती लुटा के।
करेंगे अपने सितारे से बात।
बिन शब्दों के।
और डूब जायेंगे उन्ही के सपनो में।

तुम सुन रही हो न !
आ जाओ न फिर से।
वादा करता हूँ।
नहीं जाऊंगा शहर, तुझे छोड़ के।
नहीं बनूँगा "सभ्य" फिर से।
नहीं देखूंगा किसी और की नजर से खुद को।
नहीं भागूँगा किसी मरीचिका के पीछे।
नहीं बनुगा चतुर।
मैं बुद्दू ही ठीक हूँ।
देखो न।
मैं पहले जैसा ही हो गया हूँ।
दुनिया फिर से पागल समझती हैं।
बाट देता हूँ फिर से, सारी खुशिया।
नहीं रखता तिजोरी में संभालकर।
फिर से समंदर किनारे रंग बिरंगे कंकड़ ढूंढता हूँ।
देखता हूँ लहरो को बनते , फिर बिखरते।
सुनता हूँ उनका कृन्दन।
मैं फिर से तुम सा हो गया हूँ।


अब तो आ जाओ न।
तुम्हे जोर से गले लगाना चाहता हूँ।
मोती जो संभाले।
तेरे काँधे के लिए।
देना चाहता हूँ

कहा चली गई हो तुम।
आती क्यों नहीं।
बड़ी शिद्दत से ढूंढता हूँ तुम्हे।
हर पल याद करता हूँ।
रोता हूँ।
मैं बहुत रोता हूँ।
ऐ जिन्दंगी !

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