शून्य का अपना कोई मतलब नहीं होता।
यही उसकी बैचैनी भी हैं।
खोजता हैं आदमी इसीलिए।
अपने होने का अर्थ।
कभी प्रकति, कभी लोगो से।
बनाता हैं रिश्ते, करता हैं प्रेम।
खुद को लुटाता हैं।
शायद दो शून्य मिलकर।
शून्य से कुछ ज्यादा हो जाये।
जैसे कृष्ण - राधा।
जैसे शिव - सती।
एक दूसरे के बिना।
अधूरे से।
तुम गणित में मत उलझना।
शून्य और शून्य मिलकर।
शून्य नहीं होता,
जिंदगी में।
उसे पूर्ण कहते हैं।
एक शून्य तलाश करता हैं।
अपने माने, पाने की।
पूर्ण होने की।
फिर, बुद्ध हो जाता हैं।
यही जीवन यात्रा हैं।
Dedicated to my mentor and bro: Amit Arora!
ReplyDelete