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Friday, March 12, 2021

गाँव

गाँव होने से मेरा मतलब 

नग्न निर्लल्ज सन्नाटे से नहीं था 

ही उसे ढकने के लिए 

सामूहिक शर्म डीजे के शोर से था 


गाँव होने का रूपक 

कभी धड़कन सुनाई देने वाली शांति हुआ करती थी 

तभी तो अंदर की आवाज़ साफ आती थी 

और वो साफगोईता 

नीम के पेड़ के निचे बैठे 

कड़कदार बूढ़े में झलकती थी। 


और उस शीतल शांति को 

कभी कोयल 

और चिरैया 

मधुर बनाती थी।

कानो में अमृत टपकता था 

ऐसे ही कोई 

९० -१०० साल नहीं जीता था 

गाँव में.


कभी गाँव में हम बसते थे 

अब ?

अब गाँव हमारी 

स्मृतियों में। 

Monday, March 2, 2015

शून्यता


शून्य का अपना कोई मतलब नहीं होता। 
यही उसकी बैचैनी भी हैं। 
खोजता हैं आदमी इसीलिए।
अपने होने का अर्थ। 

कभी प्रकति, कभी लोगो से। 
बनाता हैं रिश्ते, करता हैं प्रेम।  
खुद को लुटाता हैं। 
शायद दो शून्य मिलकर। 
शून्य से कुछ ज्यादा हो जाये। 

जैसे कृष्ण - राधा। 
जैसे शिव - सती। 
एक दूसरे के बिना। 
अधूरे से। 

तुम गणित में मत उलझना। 
शून्य और शून्य मिलकर। 
शून्य नहीं होता,
जिंदगी में। 

उसे पूर्ण कहते हैं। 

एक शून्य तलाश करता हैं। 
अपने माने, पाने की। 
पूर्ण होने की। 
फिर, बुद्ध हो जाता हैं।  
यही जीवन यात्रा हैं।