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Monday, June 24, 2013

मेरे ख्वाब.

तुझे देखता रहू , 
या सांसो की डोर थामे रहु. 
न देखा, तो क्या जी पाउँगा।
देखता रहा, सांसे न ले पाउँगा।
कौन है तु.

तू  शायद, अलसुबह देखा ख्वाब हैं,
जो इतना सच्चा लगता हैं 
कि साँसे रोक देता हैं।
लगता है वही जीना, जीने लायक हैं।
लेकिन जब टूटता है,
तो फिर साँसे रोक देता हैं।

फिर भी मैं, अपने अन्दर के बच्चे को समझाता हूँ.
ख्वाब एक ख्वाब ही तो है. 
ख्वाब ही रहा होगा। 
और जीते चला जाता हूँ।
बहता और बीतता रहता हूँ।
लेकिन जब कभी थोड़ी सी भी फुर्सत मिलती हैं 
मेरे ख्वाब तुम बहुत याद आते हो. 
तुम मुझे  बहुत याद आते हो...  

2 comments:

  1. बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (26-06-2013) के धरा की तड़प ..... कितना सहूँ मै .....! खुदा जाने ....!१२८८ ....! चर्चा मंच अंक-1288 पर भी होगी!
    सादर...!
    शशि पुरवार

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