इतनी हंसी इतनी जां ले आए,
मेरी आवाज़ में, अजान ले आए.
मै भटकता था यांदो में, कल्पनाओ में.
वो मुझे अभी-आज ले आए.
इतनी हंसी इतनी जां ले आए.
मेरी आवाज़ में अजान ले आए....
मैं काँटों की राह पे चला था.
वो गुलाब ले आए.
आँखों मे नींदे ना थी.
वो मीठे ख्वाब ले आये.
मेरे सुने घर का पता उन्हें किसने दिया.
वे खुशियों की बारात ले आए.
इतनी हंसी, इतनी जां ले आए.
मेरी आवाज़ में अजान ले आए....
अब ये इन्सान की फितरत हैं.
पूछेंगे मुझसे कौन हैं वो.
कहूँगा, ताजे फ़ुलो की महक हैं.
भोर में चिडिया की चहक हैं.
पहली बारिश की मिट्टी की सौंधी खुशबू हैं वो.
पूनम के चाँद में, नदिया के बीच अस्तित्व का मौन-गीत हैं वो.
किन्तु इन्सान तो इशारे नहीं समझता,
ऊँगली पकड़ लेता हैं.
फ़रिश्ते के गुजरने के बाद.
लकीर को ही ईश्वर समझ लेता हैं.
और फिर चुक जाता हैं, इस ताजे पल की अस्तितत्वगत-आनंद-अमृत वर्षा से.
मेरे जिस्म के मुर्दा मंदिर में जो,
प्राण-प्रतिष्ठा ले आए.
इतनी हंसी, इतनी जां ले आए.
मेरी आवाज़ में अजान ले आए....
मै भटकता था यांदो में, कल्पनाओ में.
वो मुझे अभी-आज ले आए.