"

Save Humanity to Save Earth" - Read More Here


Protected by Copyscape Online Plagiarism Test
Showing posts with label जिन्दंगी तू शायद मुझे हर अनुभव देना चाहती हैं...(sometimes in 1998-1999). Show all posts
Showing posts with label जिन्दंगी तू शायद मुझे हर अनुभव देना चाहती हैं...(sometimes in 1998-1999). Show all posts

Sunday, May 9, 2010

जिन्दंगी तू शायद मुझे हर अनुभव देना चाहती हैं.

जिन्दंगी तू शायद मुझे हर अनुभव देना चाहती हैं,
इसीलिए ही छाँव के बाद, कड़ी धुप का अहसास कराती हैं.
 
रस केवल मधुर ही नहीं, कड़वा भी हो सकता हैं
                           जिन्दंगी मुझे बताती हैं,
इसीलिए ही सफलता के बाद,
                           असफलता का स्वाद भी कराती हैं.
जिन्दंगी कहती हैं, तब ही हैं हँसने का मजा,
                           जब रोने का अनुभव भी हों.
इसीलिए तो कभी कभी,
                           अचानक, यु ही रुला जाती हैं.
जिन्दंगी तू शायद मुझे हर अनुभव देना चाहती हैं................
इसीलिए ही छाँव के बाद, कड़ी धुप का अहसास कराती हैं.
 
वक़्त की लम्बी राह पर,
                    कोई दे ना दे साथ मगर,
मौत के बुलावे तक,
                     जिन्दंगी साथ निभाती हैं.
राह में ठोकर खिला कर,
                    जिन्दंगी सबक सीखाती हैं,
केवल कांटे ही नहीं हैं, इस बगिया में,
                    ये फ़ूल देकर बताती हैं.
और जब मैं मंजिल को पा,
                    ख़ुशी से रो पड़ता हूँ,
तब जिन्दंगी भी कही दूर खड़ी,
                   मंद मंद मुस्कराती हैं.
जिन्दंगी तू शायद मुझे हर अनुभव देना चाहती हैं,
इसीलिए ही छाँव के बाद, कड़ी धुप का अहसास कराती हैं.
 
सुबह के बचपन, दोपहर की जवानी के बाद,
                           जब जीवन की शाम ढलती हैं,
सुबह एक नये सफ़र का वादा कर,
                          जिन्दंगी अलविदा कह जाती हैं.
जिन्दंगी तू शायद मुझे हर अनुभव देना चाहती हैं,
इसीलिए ही छाँव के बाद, कड़ी धुप का अहसास कराती हैं.
जिन्दंगी तू शायद मुझे....................................