"

Save Humanity to Save Earth" - Read More Here


Protected by Copyscape Online Plagiarism Test

Friday, May 14, 2010

माँ.

शायद कोई बेचारा रहा होगा, 
            दुर्भाग्य का मारा ही रहा होगा.
कौन था, मुझसे ये न पूछो,
           हम-तुम में से ही कोई रहा होंगा.
 पहले घर-आंगन छुटा, फिर बातो की गर्माहट ठंडी पड़ी.
          अपने हुए पराये. टूटी फिर स्नेह-प्यार की कड़ी.
क्या क्या उस पर फिर थी गुजरी, क्या क्या फिर छुटा, ये अब न पूछो. 
        किस्सा उसका सुनकर, निर्जल आंखे भी भर आई.
इस बेदर्द ज़माने में अब ये भी है सुनना पड़ा,
         उस ग़रीब के हिस्से में, "माँ" भी नहीं आई.
     उस ग़रीब के हिस्से में, "माँ" .............. माँ.

No comments:

Post a Comment

Do leave your mark here! Love you all!