नाजुक दौर, और ये जिन्दंगी का सफ़र,
पूछ्ता हैं औरों की, हमें अपनी ना खबर.
नाजुक दौर, और ये जिन्दंगी ..................
ये मैं जीता हूँ जिन्दंगी को,
या जिन्दंगी मुझे जी रही हैं.
नहीं पता मुझे,
किसके हाथ जीवन की डोर.
पूछ्ता हैं औरों की, हमें अपनी ना खबर...............
एक अबूझ सी पहेली ये जिन्दंगी,
यहाँ अनगिनत मोड़.
रफ्ता रफ्ता बीतता मैं,
और ये अनजाना सफ़र.
पूछ्ता हैं औरों की, हमें अपनी ना खबर...............
मैं कौन हूँ, सच, मुझे नहीं पता,
यहाँ हवाओं का जो रुख, वही मेरी दिशा.
ये कौन हैं, जो डरता हैं हर नये पल में,
मौत की आहट से.
ये कौन हैं, जो करता हैं,
नये का स्वागत.
कैसे कहू सच, मैं - मुझसे नहीं अवगत.
ख़ुद से ही मुलाकात की. कहा अब फ़ुरसत.
पूछ्ता हैं औरों की, हमें अपनी ना खबर...............
नाजुक दौर, और ये जिन्दंगी का सफ़र,
पूछ्ता हैं औरों की, हमें अपनी ना खबर.
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