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Monday, May 10, 2010

एक बसंत और बीता.

एक बसंत और बीता.
उम्र का प्याला और रीता.
कितने शिकवे, कितने गिले.
         कुछ कांटे, कुछ फ़ूल, पीले.
कड़वे अनुभव, कही मुस्कान खिले.
        कुछ अपने बिछड़े, कुछ नये मिले.
कितने नकली, चेहरे उतरे.
        कुछ फ़रिश्ते, भूले बिसरे.
खारे मोती, हँस सा पीता.
         एक बरस ओर मैं, बीता.
उम्र का प्याला और रीता.
एक बसंत और बीता............

अब क्यों पालू, कुछ नये भ्रम.
        क्या वो धोखे, थे कुछ कम.
वो कड़वे घूंट, वो जहरीले वार.
        इंसानियत मेरी तार तार.
क्यों करू, फिर भरोसा.
        एक ही धर्मं, सिर्फ पैसा?
मानव अब, मानवता से अछुता.
एक बसंत और बीता.
उम्र का प्याला और रीता......

अस्तित्व पर, कहा है रुकता. 
        नये पत्ते फिर सृजित करता.
फिर छोटी सी किरण मिल जाती.
        मौत फिर, जिन्दंगी से हार जाती.
संघर्ष मैं छोडूंगा नहीं.
        हार मैं अभी मानूंगा नहीं.
आदमी नहीं, अब मैं बच्चो से मिलता.
        उनसे ही अब जीना, सीखता.
कितने महके, ये कितने ताजे.
        बिन वैभव, राजे महाराजे.
बिन मतलब रिश्ते बनाते.
        प्यार से गले लगाते.
गतली (ग़लती) , पकडे (कपड़े) में तुतलाते.
        हाथी, गाय, पेड़, पानी, तारे बतलाते.
नहीं मतलब, तुम कितने धूर्त.
       ये तो खिलते, स्व- स्फूर्त.
स्वाति के ओंस-कण.
       मिलते जीवन-संजीवनी बन.
क्यों देखू, क्यों तलाशु, खुदा
       वो तो अब इन्ही में मिला.
इनकी हँसी, अल्लाह की नमाज,
       इनकी बातें अब मेरी कृष्ण-गीता.  
एक बसंत और बीता.
उम्र का प्याला और रीता.
एक बसंत अब और बीता.......

2 comments:

  1. इस उम्र में इतनी बेहतरीन रचना!!!

    मेरी लेखनी में इतनी योग्यता नहीं की इस रचना पर कोई टिपण्णी दे सकू, बस इतना ही काह सकता हूँ की हम अब आप के साथ साथ आपकी कलम के भी मुरीद हो गए है.

    बहुत साधुवाद

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  2. थैंक्स बिग बी (अतुलजी). आपकी इतनी विनम्रता सिर्फ एक ही बात क़ी घोतक हैं क़ी, उन्ही पेड़ो क़ी शाखाये झुकती हैं, जो फ़लो से लदे होते हैं. आपके इतने सम्मान के आगे अपने को बहुत छोटा महसूस करता हूँ.
    आपके इतने सम्मान व प्यार के लिए, धन्यवाद.

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