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Friday, March 12, 2021

गाँव

गाँव होने से मेरा मतलब 

नग्न निर्लल्ज सन्नाटे से नहीं था 

ही उसे ढकने के लिए 

सामूहिक शर्म डीजे के शोर से था 


गाँव होने का रूपक 

कभी धड़कन सुनाई देने वाली शांति हुआ करती थी 

तभी तो अंदर की आवाज़ साफ आती थी 

और वो साफगोईता 

नीम के पेड़ के निचे बैठे 

कड़कदार बूढ़े में झलकती थी। 


और उस शीतल शांति को 

कभी कोयल 

और चिरैया 

मधुर बनाती थी।

कानो में अमृत टपकता था 

ऐसे ही कोई 

९० -१०० साल नहीं जीता था 

गाँव में.


कभी गाँव में हम बसते थे 

अब ?

अब गाँव हमारी 

स्मृतियों में। 

Monday, March 8, 2021

मूक दर्शक सभ्यता

तुम किनारे पर मूक दर्शक बनके 

ये मत सोचना 

की बीच नदी मे 

निरीहता को बचाते 

थपेड़ो से 

सिर्फ मै मारा जाऊंगा


या किसी भीड़ सड़क पर 

गुंडे के वॉर से 

फिर किसी निरीहता को बचाते 

मै चाकू के घाव झेलूँगा 

और तुम जॉम्बीज़ से मदद मांगने की बजाये 

मर जाना पसंद करूँगा 


मै तो शारीरिक रूप से चला जाऊंगा 

पर तुम जो मरोगे ना 

उसे तुम्हारी सभ्यता 

कुत्ते की मौत बोलती है


अंदर से सड़ोगे 

गलोगे 

बदबू छोड़ोगे

भीतर की आवाज़ 

और जमीर को मारकर 

यही अंजाम होगा 


और चिल्लाओगे 

नींद में 

वो जो लसकते हुए भीख मांगकर 

तुमने कर्ज लिया जीने का 

उसका एक एक पाई 

का हिसाब होगा।


प्रकृति की बैलेंस शीट में 

अन्तत: सब बराबर होता है 


तुम किनारे पर मूक दर्शक बनके 

ये मत सोचना 

सिर्फ मै मारा जाऊंगा।