अब समय इस बात का नहीं है
कि हम अब भी यही पूछे
तुम कौन हो.
ये प्रश्न सारा ध्यान
ग़लत जगह ले जाता है.
और एक अंधी दौड़ शुरू करता है
एक दूसरे को पछाड़कर आगे निकलने की।
फिर सारे मूल्यों को गिरवी रख
और अहम् की मदिरा पीने की
और घरो रिश्तो को सामानो और सुविधाओं से पाटने की.
अन्ततः अकेले रह जाने की।
प्रश्न शुरू से वही है
मै कौन हूँ
किन्तु बाहर कि दौड़ ने
अंदर झाकने की आदतों को जहर दे दिया
यात्रा तभी शुरू होती है
जब दिशा सही हो
अंदर की यात्रा में
दशा भी महत्वपूर्ण है।
और जब सही प्रश्न पूछा जाये
उत्तर भी बहुत सच्चे मिलते है
खुद की यात्रा से ही
गंगोत्री पता चलती है
जहा से सब शुरू हुआ
जहा सब एक है
इस अंतःदृष्टि के बाद
आंखे दो देखने की क्षमता खो देती है
एक ओमकार सतनाम
की गूंज उठती है
सत्य से मिलते ही
आप असत्य से संघर्ष नहीं करते
वहा आप खुले आसमान में भी
सितारों के मालिक होते है
सुबह चिड़िया आपके लिए सितार बजाती है
और सूरज आपको अंधरे से प्रकाश की और ले चलता है
तमसो माँ ज्योतिर्गमय
पता नहीं क्यों हम फिर भी
तुम कौन हो के तमाशे में
इतने क्यों उलझ जाते है
शायद नींद से जागने में
बहुत संघर्ष है
अपने आप से।
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