जवाब नहीं मिल रहे है ना ?
कभी थे भी नहीं।
हम ही भ्रमित होकर बोन्साई को वटवृक्ष मान लिए थे।
लेकिन प्रकृति की सुंदरता यही है की , दोनों साथ साथ नहीं नहीं चलेंगे
कबीर बोल गए है : प्रेम गली अति साकरी , जा में दो ना समाही।
भ्रम टूटेगा , सच्चाई और सच्चे लोग दिखेंगे।
तब तक : डरना जरुरी है। प्रकृति के पास शायद और कोई उपाय भी नहीं था।
महाभारत में अच्छे अच्छे शिक्षक और विद्वान् - योद्धा सही पक्ष को नहीं चुन पाए थे. जिनकी ऊर्जा कृष्णमय हो वही सच्चा पक्ष जान सकता है।
और आपको क्या लगता है , उन्हें ये नहीं पता था क्या कि कौन लोग भले है कौन बुरे ? मुर्ख नहीं थे वो.
चालाक थे , कपटी थे, धूर्त थे । पूरा गणित लगा के बैठे थे। कितनी सेना , कितने योद्धा है किसके पास है। कितना मिलेगा जीतने के बाद। निहत्था काला युवक क्या करेगा - जिन्हे अब हम कृष्ण के नाम से जानते है। कहते है , पीछे देखने पर सब साफ़ साफ़ दिखाई देता है। अगर पता होता कौन जीतेगा? तो कौरवो के पास कौन जाता ? नहीं , सब गणित लगा कर दाव खेले थे। कृष्ण सिर्फ प्रेम के भूखे थे , वो धूर्तो के पास होता नहीं। उनके पास सिर्फ जहर होता है और भ्रमित करने की कमला की कला।
फिर कुछ थे जो हमेशा भले पक्ष की तरफ ही खड़े होते है। वहा गणित नहीं था , बन्दर बाट की योजना नहीं थी। वहा मूल्य और सर्व कल्याण की पवित्र कामनाये थी। वो सनातन के रक्षक पीढ़ी है। हमेशा सच के साथ , सच की पारखी और रक्षक।
महाभारत आज भी वही है।
जवाब नहीं मिल रहे है ना ?
कभी थे भी नहीं उनके पास। उनके पास सिर्फ काला जादू है जो आपको भ्रमित बनाये रखता है.
अब तो जागो।
कृष्ण ऊर्जा मिलेगी। परन्तु जागरण पर ही। खेल लेकिन सस्ता नहीं है , अपने आपको दाव पर लगाना पड़ेगा। और क्या करोगे बचा कर अपने को। देखा है कभी अंतरिक्ष और अपनी औकात ? परन्तु भ्रमित इंसान खेल में रमा रहता है।
अपने अहम् को मारना इस दुनिया का सबसे बहादुरी भरा और कठिन तप है। और सच की रक्षा उसका स्वाभाविक परिणाम। जब जागोगे , कृष्ण के साथ ही खड़े होओगे , लेकिन तब तक कौरव तुम्हारा चुनाव रहेगा। तुम्हे लगता है तुम ने चुना? नहीं चुनाव की क्षमता भी नहीं है , जब तक जागरण नहीं है।
ये मनुष्य रूपी ताला , उस चाबी को लेकर ही पैदा होता है , और उसी की ताउम्र तलाश करता है।
ये अल्केमी बिरले ही देख पाते है।
यही सभी रहस्यों का रहस्य है।
जवाब नहीं मिल रहे है ना ? जागो।
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