***हममे बसता इंदौर था। *******
कचोरियो की दुकानो से लेकर।
मजनूँ बन गलियो में।
हम भी भटके हैं।
५६ दुकान पर जॉनी के हॉट डॉग।
और सराफे के दही वडे में।
राजमोहल्ला की मृगनयनी में।
हम भी कभी अटके हैं.
अब भटकना नसीब हैं।
लेकिन वो सब नहीं हैं.
जिसके लिए भटका करते थे।
समय की नदी, बहा ले गयी सब।
वो भी एक दौर था।
जब हम नहीं बसते थे ,
हममे बसता इंदौर था।
हममे बसता इंदौर था।
Disclosure: Its poetry. इसमें आए नाम, चरित्र जगह और घटनाएं या तो लेखक को क्लानाए' है या गल्प हैं और इनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति, किसी घटना या स्थान से कोई संबंध नहीं है। :-)
Tuesday, June 9, 2020
Wednesday, June 3, 2020
चुम्बक
लोहे में चुम्बक बनने की क्षमता होती है
सिर्फ अंदर बिखरे कणो को ठीक से जमाना होता है।
हमारी पूरी यात्रा लोहे से चुम्बक बनने की ही है
पृथ्वी से जन्मे हम कैसे पृथ्वी से अलग हो सकते है।
पृथ्वी एक व्यवस्थित चुम्बक ही तो है।
सिर्फ अंदर बिखरे कणो को ठीक से जमाना होता है।
हमारी पूरी यात्रा लोहे से चुम्बक बनने की ही है
पृथ्वी से जन्मे हम कैसे पृथ्वी से अलग हो सकते है।
पृथ्वी एक व्यवस्थित चुम्बक ही तो है।
Friday, May 29, 2020
मै तुम्हे याद नहीं करता
तुम अक्सर शिकायत करती हो
मै तुम्हे याद नहीं करता
सच भी है
तुम याद नहीं आती
तुम मह्सूस होती हो
हवाओ में
फ़ूलो में
हंसी में
सांसो में
निशब्द में
एकांत में
ध्यान में
अजान में
यादो के रिश्तो से
जज्बातो के रिश्ते
कही गहरे
होते है।
हा , तुम याद नहीं आती।
याद करने के लिए
दो रूहों की जरुरत होती है।
मै तुम्हे याद नहीं करता
सच भी है
तुम याद नहीं आती
तुम मह्सूस होती हो
हवाओ में
फ़ूलो में
हंसी में
सांसो में
निशब्द में
एकांत में
ध्यान में
अजान में
यादो के रिश्तो से
जज्बातो के रिश्ते
कही गहरे
होते है।
हा , तुम याद नहीं आती।
याद करने के लिए
दो रूहों की जरुरत होती है।
Sunday, May 10, 2020
तुम कौन हो.
अब समय इस बात का नहीं है
कि हम अब भी यही पूछे
तुम कौन हो.
ये प्रश्न सारा ध्यान
ग़लत जगह ले जाता है.
और एक अंधी दौड़ शुरू करता है
एक दूसरे को पछाड़कर आगे निकलने की।
फिर सारे मूल्यों को गिरवी रख
और अहम् की मदिरा पीने की
और घरो रिश्तो को सामानो और सुविधाओं से पाटने की.
अन्ततः अकेले रह जाने की।
प्रश्न शुरू से वही है
मै कौन हूँ
किन्तु बाहर कि दौड़ ने
अंदर झाकने की आदतों को जहर दे दिया
यात्रा तभी शुरू होती है
जब दिशा सही हो
अंदर की यात्रा में
दशा भी महत्वपूर्ण है।
और जब सही प्रश्न पूछा जाये
उत्तर भी बहुत सच्चे मिलते है
खुद की यात्रा से ही
गंगोत्री पता चलती है
जहा से सब शुरू हुआ
जहा सब एक है
इस अंतःदृष्टि के बाद
आंखे दो देखने की क्षमता खो देती है
एक ओमकार सतनाम
की गूंज उठती है
सत्य से मिलते ही
आप असत्य से संघर्ष नहीं करते
वहा आप खुले आसमान में भी
सितारों के मालिक होते है
सुबह चिड़िया आपके लिए सितार बजाती है
और सूरज आपको अंधरे से प्रकाश की और ले चलता है
तमसो माँ ज्योतिर्गमय
पता नहीं क्यों हम फिर भी
तुम कौन हो के तमाशे में
इतने क्यों उलझ जाते है
शायद नींद से जागने में
बहुत संघर्ष है
अपने आप से।
कि हम अब भी यही पूछे
तुम कौन हो.
ये प्रश्न सारा ध्यान
ग़लत जगह ले जाता है.
और एक अंधी दौड़ शुरू करता है
एक दूसरे को पछाड़कर आगे निकलने की।
फिर सारे मूल्यों को गिरवी रख
और अहम् की मदिरा पीने की
और घरो रिश्तो को सामानो और सुविधाओं से पाटने की.
अन्ततः अकेले रह जाने की।
प्रश्न शुरू से वही है
मै कौन हूँ
किन्तु बाहर कि दौड़ ने
अंदर झाकने की आदतों को जहर दे दिया
यात्रा तभी शुरू होती है
जब दिशा सही हो
अंदर की यात्रा में
दशा भी महत्वपूर्ण है।
और जब सही प्रश्न पूछा जाये
उत्तर भी बहुत सच्चे मिलते है
खुद की यात्रा से ही
गंगोत्री पता चलती है
जहा से सब शुरू हुआ
जहा सब एक है
इस अंतःदृष्टि के बाद
आंखे दो देखने की क्षमता खो देती है
एक ओमकार सतनाम
की गूंज उठती है
सत्य से मिलते ही
आप असत्य से संघर्ष नहीं करते
वहा आप खुले आसमान में भी
सितारों के मालिक होते है
सुबह चिड़िया आपके लिए सितार बजाती है
और सूरज आपको अंधरे से प्रकाश की और ले चलता है
तमसो माँ ज्योतिर्गमय
पता नहीं क्यों हम फिर भी
तुम कौन हो के तमाशे में
इतने क्यों उलझ जाते है
शायद नींद से जागने में
बहुत संघर्ष है
अपने आप से।
Tuesday, May 5, 2020
जवाब नहीं मिल रहे है ना ?
जवाब नहीं मिल रहे है ना ?
कभी थे भी नहीं।
हम ही भ्रमित होकर बोन्साई को वटवृक्ष मान लिए थे।
लेकिन प्रकृति की सुंदरता यही है की , दोनों साथ साथ नहीं नहीं चलेंगे
कबीर बोल गए है : प्रेम गली अति साकरी , जा में दो ना समाही।
भ्रम टूटेगा , सच्चाई और सच्चे लोग दिखेंगे।
तब तक : डरना जरुरी है। प्रकृति के पास शायद और कोई उपाय भी नहीं था।
महाभारत में अच्छे अच्छे शिक्षक और विद्वान् - योद्धा सही पक्ष को नहीं चुन पाए थे. जिनकी ऊर्जा कृष्णमय हो वही सच्चा पक्ष जान सकता है।
और आपको क्या लगता है , उन्हें ये नहीं पता था क्या कि कौन लोग भले है कौन बुरे ? मुर्ख नहीं थे वो.
चालाक थे , कपटी थे, धूर्त थे । पूरा गणित लगा के बैठे थे। कितनी सेना , कितने योद्धा है किसके पास है। कितना मिलेगा जीतने के बाद। निहत्था काला युवक क्या करेगा - जिन्हे अब हम कृष्ण के नाम से जानते है। कहते है , पीछे देखने पर सब साफ़ साफ़ दिखाई देता है। अगर पता होता कौन जीतेगा? तो कौरवो के पास कौन जाता ? नहीं , सब गणित लगा कर दाव खेले थे। कृष्ण सिर्फ प्रेम के भूखे थे , वो धूर्तो के पास होता नहीं। उनके पास सिर्फ जहर होता है और भ्रमित करने की कमला की कला।
फिर कुछ थे जो हमेशा भले पक्ष की तरफ ही खड़े होते है। वहा गणित नहीं था , बन्दर बाट की योजना नहीं थी। वहा मूल्य और सर्व कल्याण की पवित्र कामनाये थी। वो सनातन के रक्षक पीढ़ी है। हमेशा सच के साथ , सच की पारखी और रक्षक।
महाभारत आज भी वही है।
जवाब नहीं मिल रहे है ना ?
कभी थे भी नहीं उनके पास। उनके पास सिर्फ काला जादू है जो आपको भ्रमित बनाये रखता है.
अब तो जागो।
कृष्ण ऊर्जा मिलेगी। परन्तु जागरण पर ही। खेल लेकिन सस्ता नहीं है , अपने आपको दाव पर लगाना पड़ेगा। और क्या करोगे बचा कर अपने को। देखा है कभी अंतरिक्ष और अपनी औकात ? परन्तु भ्रमित इंसान खेल में रमा रहता है।
अपने अहम् को मारना इस दुनिया का सबसे बहादुरी भरा और कठिन तप है। और सच की रक्षा उसका स्वाभाविक परिणाम। जब जागोगे , कृष्ण के साथ ही खड़े होओगे , लेकिन तब तक कौरव तुम्हारा चुनाव रहेगा। तुम्हे लगता है तुम ने चुना? नहीं चुनाव की क्षमता भी नहीं है , जब तक जागरण नहीं है।
ये मनुष्य रूपी ताला , उस चाबी को लेकर ही पैदा होता है , और उसी की ताउम्र तलाश करता है।
ये अल्केमी बिरले ही देख पाते है।
यही सभी रहस्यों का रहस्य है।
जवाब नहीं मिल रहे है ना ? जागो।
कभी थे भी नहीं।
हम ही भ्रमित होकर बोन्साई को वटवृक्ष मान लिए थे।
लेकिन प्रकृति की सुंदरता यही है की , दोनों साथ साथ नहीं नहीं चलेंगे
कबीर बोल गए है : प्रेम गली अति साकरी , जा में दो ना समाही।
भ्रम टूटेगा , सच्चाई और सच्चे लोग दिखेंगे।
तब तक : डरना जरुरी है। प्रकृति के पास शायद और कोई उपाय भी नहीं था।
महाभारत में अच्छे अच्छे शिक्षक और विद्वान् - योद्धा सही पक्ष को नहीं चुन पाए थे. जिनकी ऊर्जा कृष्णमय हो वही सच्चा पक्ष जान सकता है।
और आपको क्या लगता है , उन्हें ये नहीं पता था क्या कि कौन लोग भले है कौन बुरे ? मुर्ख नहीं थे वो.
चालाक थे , कपटी थे, धूर्त थे । पूरा गणित लगा के बैठे थे। कितनी सेना , कितने योद्धा है किसके पास है। कितना मिलेगा जीतने के बाद। निहत्था काला युवक क्या करेगा - जिन्हे अब हम कृष्ण के नाम से जानते है। कहते है , पीछे देखने पर सब साफ़ साफ़ दिखाई देता है। अगर पता होता कौन जीतेगा? तो कौरवो के पास कौन जाता ? नहीं , सब गणित लगा कर दाव खेले थे। कृष्ण सिर्फ प्रेम के भूखे थे , वो धूर्तो के पास होता नहीं। उनके पास सिर्फ जहर होता है और भ्रमित करने की कमला की कला।
फिर कुछ थे जो हमेशा भले पक्ष की तरफ ही खड़े होते है। वहा गणित नहीं था , बन्दर बाट की योजना नहीं थी। वहा मूल्य और सर्व कल्याण की पवित्र कामनाये थी। वो सनातन के रक्षक पीढ़ी है। हमेशा सच के साथ , सच की पारखी और रक्षक।
महाभारत आज भी वही है।
जवाब नहीं मिल रहे है ना ?
कभी थे भी नहीं उनके पास। उनके पास सिर्फ काला जादू है जो आपको भ्रमित बनाये रखता है.
अब तो जागो।
कृष्ण ऊर्जा मिलेगी। परन्तु जागरण पर ही। खेल लेकिन सस्ता नहीं है , अपने आपको दाव पर लगाना पड़ेगा। और क्या करोगे बचा कर अपने को। देखा है कभी अंतरिक्ष और अपनी औकात ? परन्तु भ्रमित इंसान खेल में रमा रहता है।
अपने अहम् को मारना इस दुनिया का सबसे बहादुरी भरा और कठिन तप है। और सच की रक्षा उसका स्वाभाविक परिणाम। जब जागोगे , कृष्ण के साथ ही खड़े होओगे , लेकिन तब तक कौरव तुम्हारा चुनाव रहेगा। तुम्हे लगता है तुम ने चुना? नहीं चुनाव की क्षमता भी नहीं है , जब तक जागरण नहीं है।
ये मनुष्य रूपी ताला , उस चाबी को लेकर ही पैदा होता है , और उसी की ताउम्र तलाश करता है।
ये अल्केमी बिरले ही देख पाते है।
यही सभी रहस्यों का रहस्य है।
जवाब नहीं मिल रहे है ना ? जागो।
Tuesday, April 21, 2020
शहरी - गँवार - Part 2
बीड़ी फूकते हुए
शरीर वा को लुंगी के सहारे ढके हुए
बुधवा बड़बड़ाया
ई शहर का लोग
पहले पता नहीं
किस चीज के पीछे
इधर से उधर
उधर से इधर
भागता ही रहता था
अब पता नहीं काहे
किस चीज से डर कर
घर में ही क़ैदवा है
कोई कहत है
पहले करेंसी था
अब कोरोना है
दोनों ही साला
सुने है
बहुत भयानकवा है
बुधवा थोड़ा चिंतित दिखा
दार्शनिको की तरह
गॉव का निपट गवार है न
लोगो का चिंता तो रहता ही है।
शरीर वा को लुंगी के सहारे ढके हुए
ई शहर का लोग
पहले पता नहीं
किस चीज के पीछे
इधर से उधर
उधर से इधर
भागता ही रहता था
अब पता नहीं काहे
किस चीज से डर कर
घर में ही क़ैदवा है
कोई कहत है
पहले करेंसी था
अब कोरोना है
दोनों ही साला
सुने है
बहुत भयानकवा है
बुधवा थोड़ा चिंतित दिखा
दार्शनिको की तरह
गॉव का निपट गवार है न
लोगो का चिंता तो रहता ही है।
Wednesday, January 8, 2020
मोहब्बत
जीतने का हुनर जो पूछा मैंने
उसने तलवार थमा दी
वो मजहब सिखाने आया था
मैंने भी, मोहब्बत सीखा दी.
उसने तलवार थमा दी
वो मजहब सिखाने आया था
मैंने भी, मोहब्बत सीखा दी.
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