आज बहुत अच्छा पढ़ा,जिसे साहित्य कहते है, पढ़ा। कुंवर नारायण को पढ़ा।
अभिजात्यपन से फिर आंखे चार हुई। कुहासे के पीछे छुपा, वैभव फिर याद आया। नेत्र नम है।
अपने से परिचय एक गहरा संतृप्त अनुभव देता है। अभिजात्य साहित्य आपकी अंगुली पकड़ कर, बड़े मनुहाल से ले चलता है उस पार। जीवन के आपाधापी के टुच्चे पन को कही दूर फेककर , आत्मा उजास से भरती है।
अच्छा साहित्य एक उजास भरता है। कलंकित नहीं करता। जीवन ऊर्जा को उर्ध्व गति देता है.
ध्यान का गहरा अनुभव खुद की अनुपस्थिति से पैदा होता है।
आज इतना ही।
ओके मनीषा?
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