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Friday, March 16, 2018

मेरे गॉव

अक्सर गॉव जाते है शहर
तलाशते है मकसद
भिड़ते लड़ते पीटते
खोते है खुद को
आहिस्ता आहिस्ता

मगर जब भी बारिशे
भिगोती है माटी को।
नम आँखों की बरसातों से
भीतर सौंधी खुशबु फिर महकती है।
गॉव फिर जिन्दा हो उठते है।
मेरे गॉव फिर जिन्दा हो उठते है।

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