कभी जो थी सीने मे, आग,
वो अब पेट में धधकती हैं।
बूढ़ी होती जिन्दंगी,
कुछ यू रंग बदलती हैं।
कभी आँखों में आसमां समेटे थे हमने।
आज देह मेरी,
जमीं के टुकड़े को तरसती हैं।
कभी मौसमो के तूफान से
खेले थे हम।
आज ये आँखों से
सावन बरसती हैं।
बूढ़ी होती जिन्दंगी,
कुछ यू रंग बदलती हैं।
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