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Thursday, August 25, 2011

मुखर अब मैं, मौन में हूँ.


मुखर अब मैं, मौन में हूँ.
प्रश्न वही, कौन मैं हूँ.

नदी लहरा लहरा जाती.
सागर में खो जाती.
उत्तर कब कहा मिला.
और नदी अब बची कहा.
प्रश्न ही पूछे कौन अब मैं हूँ.

मुखर अब मैं, मौन में हूँ.
प्रश्न वही, कौन मैं हूँ.

मुखर अब मैं, मौन में हूँ.
...

आज इतना ही.
प्यार.
राहुल.

8 comments:

  1. -कुछ कडिया और भी जोड़ना हैं लेकिन आज इतना ही.
    वातावरण मौन का हैं. सोचने और फिर कुछ द्रुण निर्णय का हैं.

    आज मौन को मुखर किया जाये.

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  2. कौन है वो जिसके उत्तर की है प्रतीक्षा आज भी
    क्यूँ नहीं खुद सोच के सम्पूर्ण हूँ मैं ....

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  3. मुखर अब मैं, मौन में हूँ.
    प्रश्न वही, कौन मैं हूँ.
    sundar ,
    kai baar maun bhi sab kuch kah deta hai....!

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  4. बेहतरीन ,बधाइयाँ

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  5. @रश्मि प्रभा di, Search is on!
    @वन्दना ji, thanks, So nice of you, Would visit that.
    @shashi ji: Very true!
    @Amrita ji: Thanks a ton!

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  6. मौन में मन का कोलाहल प्रखर हो जाता है।

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  7. बहुत खूब राहुल जी, बड़ी प्यारी कविता है
    आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा.

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  8. बहुत सुंदर राहुल जी ....बेहद अर्थपूर्ण पंक्तियाँ हैं....

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