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Tuesday, May 10, 2016

महाभारत


कोई बच्चा भिखारी पैदा नहीं होता, वरन बादशाह ! एक निज वैभव।
सांसारिकता उसके क्षरण का कारक हैं
और सच्ची आध्यात्मिकता उस बच्चे को जिन्दा रखने का तप।
क्या हम खुद को ही खोते हैं, और सारी उम्र खुद को ढूंढते हैं?
शायद जहां दूसरे की आँखों का बोध होता हैं,
वही से दूसरा बनने की प्रक्रिया शुरू होती हैं।
और एक सिफर की तरफ सफर शुरू होता हैं।
खुद से बिछडने का।
तलाश शून्य से शुरू होकर शून्यता के बोध से महा -शून्य में मिल जाने की ही हैं।
जन्मों ये यात्रा जारी रहती हैं।
राजकुमार और बुद्ध।
दो क्षोरो के प्रतिक हैं।
जन्म लेना पृकृति का तुम्हारा चुनाव हैं।
बुद्ध होना तुम्हारा।
इन दो चुनावो के बीच,
किसी अर्जुन को , कृष्ण मिल जाते हैं।
और कुछ कर्ण और अभिमन्यु की तरह अभिशप्त हो जाते हैं।
ये सारे पात्र , अलग अलग नहीं हैं।
हम ही जीते हैं, एक ही जिंदगी में।
रोज।
हर रोज महाभारत होती हैं।
और गीता भी।
संसार से सम्बन्ध महाभारत हैं।
गीता खुद से संवाद।

यदा यदा ही धर्मस्य।
-राहुल

Thursday, August 25, 2011

मुखर अब मैं, मौन में हूँ.


मुखर अब मैं, मौन में हूँ.
प्रश्न वही, कौन मैं हूँ.

नदी लहरा लहरा जाती.
सागर में खो जाती.
उत्तर कब कहा मिला.
और नदी अब बची कहा.
प्रश्न ही पूछे कौन अब मैं हूँ.

मुखर अब मैं, मौन में हूँ.
प्रश्न वही, कौन मैं हूँ.

मुखर अब मैं, मौन में हूँ.
...

आज इतना ही.
प्यार.
राहुल.