आज के दलदली वक्त में ये चिन्गारिया मौंजू हैं, दुष्यंत की सांसो ने जिन्हें फेफड़ो से रगड़ पैदा किया. मशाल-मेरे तेरे दिल की जला कर औरो तक भी पहुचाना. क्योकि मकसद ये नहीं कौन मशाल ले मंजिल पे पंहुचा. मायने इस बात के हैं कि वो आग पहुचना चाहिए. तो अगर इन्हें पढ कर आग जले तो उसे संभालना और सहेजना, कई लंकाए हनुमान के लिए राह तक रही हैं.
दुष्यंत कुमार की इन चिंगारियों को उद्घृत करने का मोह नहीं छोड़ पा रहा हूँ.
********हो गयी हैं पीर पर्वत सी ***********
हो गयी हैं पीर पर्वत सी, पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए |
आज ये दीवार, पर्दों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि यह बुनियाद हिलनी चाहियें|
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए, हर लाश चलनी चाहिए |
सिर्फ हंगामे खड़े करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश हैं कि ये सूरत बदलनी चाहिए |
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कही भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए.
---दुष्यंत कुमार.
भटकते भटकते एक सुंदर सी वेब साईट http://www.geeta-kavita.com पर भी पंहुचा, जिनकी राजीव कृष्ण सक्सेना साहब मालकियत रखते हैं. थोडा सा उनकी साईट और उनके सुन्दर से प्रयास के बारे में भी---->Geeta-Kavita is a website devoted to Hindi Literature, especially poetry and contemplations. The site is run by Rajiv Krishna Saxena, a professor of Biology / Immunology at the New Delhi’s Jawaharlal Nehru University, who runs the site because of his interest in promoting Hindi poetry, literature and the Indian thought.
आज इतना ही.
प्यार.
राहुल
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