"

Save Humanity to Save Earth" - Read More Here


Protected by Copyscape Online Plagiarism Test
Showing posts with label crowd. Show all posts
Showing posts with label crowd. Show all posts

Sunday, September 26, 2010

इसी भीड़ में.

थोड़ी ऊचाई पर जब,खड़ा होता हूँ मैं.
दिखती हैं मुझे, रेंगती सी भीड़.
जानवरों की नहीं,
तथाकथित मानवों की. 
वह भीड़ जिसकी अपनी कोई मंजील नहीं.
न ही कोई दिशा.
एक दुसरे से टकराती जिन्दगिया,
एक दुसरे से आगे निकलने की होड़.
मानव से ही संघर्ष करता मानव.
सोचता हूँ कभी, क्या यही नियति हैं?
जन्म और मृत्यु के बीच सिर्फ संघर्ष ?
एक होड़, अपनों से, अपनों के बीच?

भीड़ कई प्रश्न छोड़ जाती हैं मुझ पर,
परन्तु उत्तर नहीं बताती.
मेरा सरल आत्मा उत्तर पूछती हैं,
भीड़ कहती हैं उत्तर शब्दों में निहित नहीं हैं.
आओ, और शामिल हो जाओ मुझ में तुम भी.
बनो मेरा हिस्सा और गुजरो प्रसव पीड़ा से.
क्योकि हर भीड़ में कुछ बुद्ध उत्तर पा जाते हैं.
फिर वे भीड़ से अलग हो जाते हैं.
जैसे कीचड़ में खिल जाये कोई कमल...
तुम्हे भी यही करना होंगा.

हाँ, मैं भी हूँ अब शामिल इसमे.
अनिच्छा से ही सही, लेकिन संघर्ष करता हुआ अपनों से.
जीता जा रहा हूँ मैं निरंतर,
नदी के बहाव में तिनके की तरह.
कि कभी मिलेंगा उत्तर.
और जान पाउँगा, आखिर कौन हूँ मैं.
लेकिन तब तक मुझे भी इसी भीड़ में जीना हैं.
हाँ, इसी भीड़ में.............................

आज इतना ही,
प्यार
राहुल.

Dated Composed on : 5:50 PM, 5 october, 1999