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Sunday, September 25, 2011

मेरे हमसफ़र.

रोज कई सवाल पूछता हैं, मुझसे रूठा सा रहता हैं.
सुबह सुबह आईने में, एक शख्श रोज मिलता हैं.

कहता हैं कुछ अपने गिले शिकवे.
कुछ मेरी सुनता हैं.
हसता हैं कभी मेरे साथ,
चुपके से अक्सर रो भी लेता हैं.
भीड़ के बीच के सन्नाटे में, इतना तो सुकून हैं.
हर पल वो मेरे साथ रहता हैं.

रोज कई सवाल पूछता हैं, मुझसे रूठा सा रहता हैं.
सुबह सुबह आईने में, एक शख्श रोज मिलता हैं.

10 comments:

  1. वही मन को राह भी दिखाता है।

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति बधाई ,
    यही शख्स जीवन में हमारा हमेशा साथ देता है ,
    यही तो है जो हमारा अपना होता है

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  3. बहुत ही सुंदर राहुल जी , बहुत सुंदर रचना ।

    यदि भविष्य में , कभी ब्लॉग की साज सज्जा करें तो इसके गाढे रंग के स्थान पर किसी हल्के रंग का उपयोग करें तो पाठकों के लिए अच्छा होगा , शुक्रिया

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  4. बहुत सुंदर रचना....
    समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। आपको और आपके सम्पूर्ण परिवार को हम सब कि और से नवरात्र कि हार्दिक शुभकामनायें...
    .http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  5. शुक्रिया सभी महानुभावो का....आपके सुझाव और समय के लिए आभार...

    मयंक जी का ऋणी हूँ उनके स्नेह के लिए.

    पल्लवी जी, आपका ब्लॉग देखा. बिलकुल आपकी तरह ही "मैं कहता आंखन देखी".:-)

    अजय जी, २ कारणों से मेने अपने ब्लॉग का पृष्ठ भाग काला रखा हे.
    १) अपने शायद गूगल का काला रंग देखा हो. (http://www.blackle.com/)..तो मेरी कोशिश उर्जा बचाने की हैं..
    २) दूसरा काला रंग प्रतीत हैं अवचेतन का. मुझे व्यक्तिगत रूप से यह लगता हैं की, जो कुछ रचना के माध्यम से उतरता हैं वो वही से आता हैं. सो काले रंग में उभरे शब्द अवचेतन से उभरते लगते हे, और वही डूबते हैं...मेरी सोच :-).
    फिर भी मैं नए सुझाव का स्वागत करता हूँ.

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  6. Wah,Hansta hai kabhi mere saath, chupke se kabhi ro bhi leta hai.....har pal woh mere saath rahta hai. Sndar ati sundar.

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  7. खूबसूरती से भावों को बांध लिया है कविता ने, एक प्रभावशाली प्रस्तुति।

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