इतना कुटील सन्नाटा सा पसरा है
सुना है दोस्ती अब अनबन है
और सब खामोश है
जैसे मन मस्तिक सुन्न कर दिया गया हो
कोई तो हुआ है कामयाब
अपने मंसूबो में
क्या वो भूख है
या बदन नंगा है
या है छत की तलाश
नहीं
सब के पेट फुले है
फटे कपडे दरअसल नया तसव्वुर है
मेरे ज़माने का
और हाँ
सब के पास फार्म हाउस भी है
जहाँ वो डोंट लुक अप वाली सेल्फी खींच
इंस्टा पर डालते है , कुछ चाह की आस में
फिर ?
फिर क्या हुआ होगा
जरूर सियासत फिर भूखी होगी
नंगी तो थी ही
और हमेशा बेघर कर देती है
तीन पीढ़ियों की मेहनत पर
बस एक बम डाल देती है
एक पूरा परिवार फिर सड़को पर आ जाता है
उदास बच्चे अपना कसूर पूछते हुए
सीमाएं पर करते है
और पाते है नया तमगा
शरणार्थी का
हमारा पूरा इतिहास
इसी को दोहराता है
सियासत सब भुला देती है
छद्म वेश में नया नारा लेके आती है
एक नया हिटलर
फिर देश प्रेम की कस्मे खिलवाता है
और सीमाएं फिर गर्म हो जाती
सियासत उसी पर अपनी
वोटो की रोटी सेकती है
कोई तो हुआ है कामयाब
अपने मंसूबो में
सुना है दोस्ती अब अनबन है
और सब खामोश है
सियासत ही होगी।
सियासत ही रही है।
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