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Thursday, March 17, 2022

सियासत

इतना कुटील सन्नाटा सा पसरा है 

सुना है दोस्ती अब अनबन है 

और सब खामोश है 

जैसे मन मस्तिक सुन्न कर दिया गया हो 

कोई तो हुआ है कामयाब 

अपने मंसूबो में 


क्या वो भूख है 

या बदन नंगा है 

या है छत की तलाश 


नहीं 

सब के पेट फुले है 

फटे कपडे दरअसल नया तसव्वुर है 

मेरे ज़माने का 

और हाँ 

सब के पास फार्म हाउस भी है 

जहाँ वो डोंट लुक अप वाली सेल्फी खींच 

इंस्टा पर डालते है , कुछ चाह की आस में 


फिर ?

फिर क्या हुआ होगा 

जरूर सियासत फिर भूखी होगी 

नंगी तो थी ही 

और हमेशा बेघर कर देती है 

तीन पीढ़ियों की मेहनत पर 

बस एक बम डाल देती है 

एक पूरा परिवार फिर सड़को पर जाता है 

उदास बच्चे अपना कसूर पूछते हुए 

सीमाएं पर करते है 

और पाते है नया तमगा 

शरणार्थी का 


हमारा पूरा इतिहास 

इसी को दोहराता है 

सियासत सब भुला देती है 

छद्म वेश में नया नारा लेके आती है 

एक नया हिटलर 

फिर देश प्रेम की कस्मे खिलवाता है 

और सीमाएं फिर गर्म हो जाती 

सियासत उसी पर अपनी 

वोटो की रोटी सेकती है 


  

कोई तो हुआ है कामयाब 

अपने मंसूबो में 

सुना है दोस्ती अब अनबन है 

और सब खामोश है 

सियासत ही होगी।

सियासत ही रही है।  

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