सुकून से आज रात्रि को बालकनी में बैठा जाये, नितांत अपने साथ, चारो तरफ घुप्प अँधेरा हो और थोड़ी दूर से मद्धम आवाज़ में "फिर छिड़ी रात बात फूलों की" सुना जाये।
जैसे जैसे रात गहरी होगी, आँखों में नींद की झपकियाँ दस्तक देगी और दिन के उजाले का उथलापन, गहन अँधेरा का सुकून उजागर करेगा। दिलो दिमाग गहरी प्यास लिए जब निशब्दता में व्याप्त सुकून की गोद में आसरा तलाशेगा और शायद उमराव जान अपनी आँखों की मस्ती लेके याद आये। कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, अपने वक्त में खींच कर लेके जायेगा और पूछेगा : ऐ दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है?
फिर एक गहरी शांति दिमाग से उतरती हुई दिल तक जाएगी और आत्मा को हील करेगी, एक गहरी नींद अपने आगोश में ले लेगी।
मोहम्मद जहूर खय्याम - को सिर्फ इसी तरह से विदाई दी जा सकती है.
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