तुम बहुत कम दिखती हो.
खिली धुप में
खुले आसमान में
उड़ती हो
तितली हो
या बादल हो
बेपरवाह हो
खिलखिलाती हो
रुलाती हो
कुछ नया
रोज सिखाती हो
कहा हो आजकल
तुम कम दिखती हो
ऐ जिंदगी
बहुत ढूंढा तुम्हे
तुम थोड़ा कम ही मिलती हो।
आजकल बहुत कम दिखती हो.
Monday, November 4, 2019
Sunday, September 22, 2019
तेरा चेहरा
कुछ चेहरे ऐसे है, जैसे मुझे पहचान देते है।
चलो इस गुफ्तगू को थोड़ा आराम देते है।
हर वक्त ये ख़ामोशी, मुक्कमल नहीं होती।
वो खुदा बन ही गया है, चल अजान देते है।
इस आदमखोर दुनिया से, कब तलक डरेंगे हम।
इस खूबसूरत रिश्ते को अब, एक मचान देते है।
तुम्हारा अक्सर वो नशीली सी भारी आवाज़ से कहना
हम जा रहे है राहुल।
दिल बैठ जाता है , हम भी जान देते है।
कुछ चेहरे ऐसे है, जैसे मुझे पहचान देते है।
चलो इस गुफ्तगू को थोड़ा आराम देते है।
चलो इस गुफ्तगू को थोड़ा आराम देते है।
हर वक्त ये ख़ामोशी, मुक्कमल नहीं होती।
वो खुदा बन ही गया है, चल अजान देते है।
इस आदमखोर दुनिया से, कब तलक डरेंगे हम।
इस खूबसूरत रिश्ते को अब, एक मचान देते है।
तुम्हारा अक्सर वो नशीली सी भारी आवाज़ से कहना
हम जा रहे है राहुल।
दिल बैठ जाता है , हम भी जान देते है।
कुछ चेहरे ऐसे है, जैसे मुझे पहचान देते है।
चलो इस गुफ्तगू को थोड़ा आराम देते है।
Tuesday, September 17, 2019
I Will Remember You!
In moments just before goodbye, what's to ask, what's there to know?
Why let my thoughts sully your mood and spoil your show?
Words, stories, feelings, my life's replete
As I sift through my memories, which to kill, which to let defeat?
Standing at the crossroads, which path should this traveler take?
Your footsteps matched mine till now, now of this what should I make?
The courage you seeped me in, the brave dreams I could dream
Impossible without you, without the light that you beam
Somewhere will our paths ever cross, I allow myself to think
Memories come rushing, taking me to the brink!
Why let my thoughts sully your mood and spoil your show?
Words, stories, feelings, my life's replete
As I sift through my memories, which to kill, which to let defeat?
Standing at the crossroads, which path should this traveler take?
Your footsteps matched mine till now, now of this what should I make?
The courage you seeped me in, the brave dreams I could dream
Impossible without you, without the light that you beam
Somewhere will our paths ever cross, I allow myself to think
Memories come rushing, taking me to the brink!
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Wednesday, August 21, 2019
मोहम्मद जहूर खय्याम
मोहम्मद जहूर खय्याम - को एक ही तरह से विदाई दी जा सकती है.
सुकून से आज रात्रि को बालकनी में बैठा जाये, नितांत अपने साथ, चारो तरफ घुप्प अँधेरा हो और थोड़ी दूर से मद्धम आवाज़ में "फिर छिड़ी रात बात फूलों की" सुना जाये।
जैसे जैसे रात गहरी होगी, आँखों में नींद की झपकियाँ दस्तक देगी और दिन के उजाले का उथलापन, गहन अँधेरा का सुकून उजागर करेगा। दिलो दिमाग गहरी प्यास लिए जब निशब्दता में व्याप्त सुकून की गोद में आसरा तलाशेगा और शायद उमराव जान अपनी आँखों की मस्ती लेके याद आये। कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, अपने वक्त में खींच कर लेके जायेगा और पूछेगा : ऐ दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है?
फिर एक गहरी शांति दिमाग से उतरती हुई दिल तक जाएगी और आत्मा को हील करेगी, एक गहरी नींद अपने आगोश में ले लेगी।
मोहम्मद जहूर खय्याम - को सिर्फ इसी तरह से विदाई दी जा सकती है.
सुकून से आज रात्रि को बालकनी में बैठा जाये, नितांत अपने साथ, चारो तरफ घुप्प अँधेरा हो और थोड़ी दूर से मद्धम आवाज़ में "फिर छिड़ी रात बात फूलों की" सुना जाये।
जैसे जैसे रात गहरी होगी, आँखों में नींद की झपकियाँ दस्तक देगी और दिन के उजाले का उथलापन, गहन अँधेरा का सुकून उजागर करेगा। दिलो दिमाग गहरी प्यास लिए जब निशब्दता में व्याप्त सुकून की गोद में आसरा तलाशेगा और शायद उमराव जान अपनी आँखों की मस्ती लेके याद आये। कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, अपने वक्त में खींच कर लेके जायेगा और पूछेगा : ऐ दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है?
फिर एक गहरी शांति दिमाग से उतरती हुई दिल तक जाएगी और आत्मा को हील करेगी, एक गहरी नींद अपने आगोश में ले लेगी।
मोहम्मद जहूर खय्याम - को सिर्फ इसी तरह से विदाई दी जा सकती है.
Saturday, August 17, 2019
कबीर
कबीर और ओशो , किसी परमाणु विस्फोट की तरह विचारो और उससे परे हमें झझोरते है।
परिचय पहले कबीर से हुआ। शायद कक्षा ६ की बात होगी , कबीर के दोहे हमारी हिंदी की किताब में शामिल थे। बस पढ़ा और नशा किसी और गृह ले गया।
तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे ।
मै कहता आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी ।
मै कहता सुरझावन हारी, तू राख्यो अरुझाई रे ॥
मै कहता तू जागत रहियो, तू जाता है सोई रे ।
मै कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे ॥
जुगन-जुगन समझावत हारा, कहा न मानत कोई रे ।
तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे ॥
सतगुरू धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे ॥
तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे ।
जाने क्या असर था , ११-१२ साल की उम्र में दोहे गाते नाचने लगा था। आनंद परिसीमित नहीं होता, परमात्मा की तरह। जब भी आनंद में डुबो , समझना करीब हो। उससे ज्यादा यादें नहीं है। कबीर आत्मा में उतर चुके थे। शायद आधुनिक कबीर (ओशो ) की तैयारी थी।
ऐसा क्या है कबीर की बानी में ? कबीर विद्रोही थे। मेरा विद्रोह शायद वही से जन्मा और ओशो ने उसे आग दी . कबीर मनुष्य की समग्र मुक्ति को ही शब्द देते हैं -अत्यंत संवेदनशील मन, संतुलित विवेक, गहन चिंतन और एक गहन अंतर्दृष्टि। ये बीज कबीर ने ही बोये। कबीर ईश्वर में डूबकर न तो तत्काल से कटे न दिक्काल से। प्रेम भक्ति ने उन्हें आत्म केन्द्रित नहीं बनाया। कबीर ने अपनी मुक्ति नहीं जगत की मुक्ति चाही। यही मेरे अंतप्रेरणा में अंकित हुए। अपना ही चाहना बहुत टुच्चापन लगा।
कुछ दोहे और ऐसा असर। परमाणु विस्फोट से ही संभव है। विचार मरते नहीं , सच्चाई अगर उनमे समाई है तो , किसी परमाणु विस्फोट की तरह ताकत रखते है। सही कैटलिस्ट मिला और .....सीधे धरती की चुंबकीय ताकत जो हमारी रोज की आपाधापी है , उसे कही पीछा छोड़, आकाश की यात्रा होती है. हमारी आत्मा की मिसाइल अंतरिक्ष की अनंत ऊर्जा में छलांग लगा लेती है। फिर किसी और आयाम पर काम होता है।
और मन से आवाज़ आई -
शर्म लाज सब छोड़ी के, आत्म लगा थिरकाय।
जब कबीरा पढ़न में चला, औरन दिया बिसराय।
खैर माता पिता संभल गए, डांटा फटकारा और वापस खेच कर धरातल पर लाये।
कबीर मेरे पहले परमाणु विस्फोट है , जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण के बंधनो से मुक्ति देकर, धरती से परे, किसी और आयाम पर ले गए।
ओशो दूसरे,जिन्होंने इस गैलक्सी से परे जाके अनेकानेक गैलेक्सी से परिचय करवाया। ओशो आपको व्यग्तिगत रूप से मिलवाते है। आप को सम्बोधित नहीं करते , हाथ पकड़ कर परिचय करवाते है। वो गैलेक्सी जहा से जीवन तारकर इस जीवन मे प्रकट हुए है किन्तु यादे विस्मरण है। कहा से शुरू करू , कहा ख़त्म।
मीरा, दादू ,महावीर, बुद्ध, कृष्ण, शिव , कृष्ण्मूर्ति, नानक, लाओत्ज़ु , जुरजिएफ, रूमी , जीसस , राबिआ ,खैयाम, नचिकेता ,अष्टावक्र और कबीर। और मुल्ला नसरुद्दीन को कैसे भूलू.?
बड़े दिनों बाद कबीर को सुना, अश्रुओ की गंगा ने मन फिर पवित्र किया और कुछ पुरानी , बहुत पुरानी कबीर से पहले परिचय की यांदे ताजा हो गई। इससे पहले की वक्त यादो को भी छीन ले, सोचा उन पलो को शब्दों में बांध रख दू। कभी कोई शायद आये तलाश करते और इस गठरी को खोल आँखों में नमी लिए मुस्कराये.
शुजात हुसैन दिव्यता से गुनगुनाते है , गुलज़ार कहते है ना , एक कबीर, ऊपर से शुजात। नशे इकहरे ही अच्छे होते है।
मोको कहाँ ढूंढें बन्दे, मैं तो तेरे पास में ।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकांत निवास में ।
ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबे कैलाश में ॥
ना मैं जप में, ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपास में ।
ना मैं क्रिया क्रम में रहता, ना ही योग संन्यास में ॥
आज इतना ही
परिचय पहले कबीर से हुआ। शायद कक्षा ६ की बात होगी , कबीर के दोहे हमारी हिंदी की किताब में शामिल थे। बस पढ़ा और नशा किसी और गृह ले गया।
तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे ।
मै कहता आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी ।
मै कहता सुरझावन हारी, तू राख्यो अरुझाई रे ॥
मै कहता तू जागत रहियो, तू जाता है सोई रे ।
मै कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे ॥
जुगन-जुगन समझावत हारा, कहा न मानत कोई रे ।
तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे ॥
सतगुरू धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे ॥
तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे ।
जाने क्या असर था , ११-१२ साल की उम्र में दोहे गाते नाचने लगा था। आनंद परिसीमित नहीं होता, परमात्मा की तरह। जब भी आनंद में डुबो , समझना करीब हो। उससे ज्यादा यादें नहीं है। कबीर आत्मा में उतर चुके थे। शायद आधुनिक कबीर (ओशो ) की तैयारी थी।
ऐसा क्या है कबीर की बानी में ? कबीर विद्रोही थे। मेरा विद्रोह शायद वही से जन्मा और ओशो ने उसे आग दी . कबीर मनुष्य की समग्र मुक्ति को ही शब्द देते हैं -अत्यंत संवेदनशील मन, संतुलित विवेक, गहन चिंतन और एक गहन अंतर्दृष्टि। ये बीज कबीर ने ही बोये। कबीर ईश्वर में डूबकर न तो तत्काल से कटे न दिक्काल से। प्रेम भक्ति ने उन्हें आत्म केन्द्रित नहीं बनाया। कबीर ने अपनी मुक्ति नहीं जगत की मुक्ति चाही। यही मेरे अंतप्रेरणा में अंकित हुए। अपना ही चाहना बहुत टुच्चापन लगा।
कुछ दोहे और ऐसा असर। परमाणु विस्फोट से ही संभव है। विचार मरते नहीं , सच्चाई अगर उनमे समाई है तो , किसी परमाणु विस्फोट की तरह ताकत रखते है। सही कैटलिस्ट मिला और .....सीधे धरती की चुंबकीय ताकत जो हमारी रोज की आपाधापी है , उसे कही पीछा छोड़, आकाश की यात्रा होती है. हमारी आत्मा की मिसाइल अंतरिक्ष की अनंत ऊर्जा में छलांग लगा लेती है। फिर किसी और आयाम पर काम होता है।
और मन से आवाज़ आई -
शर्म लाज सब छोड़ी के, आत्म लगा थिरकाय।
जब कबीरा पढ़न में चला, औरन दिया बिसराय।
खैर माता पिता संभल गए, डांटा फटकारा और वापस खेच कर धरातल पर लाये।
कबीर मेरे पहले परमाणु विस्फोट है , जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण के बंधनो से मुक्ति देकर, धरती से परे, किसी और आयाम पर ले गए।
ओशो दूसरे,जिन्होंने इस गैलक्सी से परे जाके अनेकानेक गैलेक्सी से परिचय करवाया। ओशो आपको व्यग्तिगत रूप से मिलवाते है। आप को सम्बोधित नहीं करते , हाथ पकड़ कर परिचय करवाते है। वो गैलेक्सी जहा से जीवन तारकर इस जीवन मे प्रकट हुए है किन्तु यादे विस्मरण है। कहा से शुरू करू , कहा ख़त्म।
मीरा, दादू ,महावीर, बुद्ध, कृष्ण, शिव , कृष्ण्मूर्ति, नानक, लाओत्ज़ु , जुरजिएफ, रूमी , जीसस , राबिआ ,खैयाम, नचिकेता ,अष्टावक्र और कबीर। और मुल्ला नसरुद्दीन को कैसे भूलू.?
बड़े दिनों बाद कबीर को सुना, अश्रुओ की गंगा ने मन फिर पवित्र किया और कुछ पुरानी , बहुत पुरानी कबीर से पहले परिचय की यांदे ताजा हो गई। इससे पहले की वक्त यादो को भी छीन ले, सोचा उन पलो को शब्दों में बांध रख दू। कभी कोई शायद आये तलाश करते और इस गठरी को खोल आँखों में नमी लिए मुस्कराये.
शुजात हुसैन दिव्यता से गुनगुनाते है , गुलज़ार कहते है ना , एक कबीर, ऊपर से शुजात। नशे इकहरे ही अच्छे होते है।
मोको कहाँ ढूंढें बन्दे, मैं तो तेरे पास में ।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकांत निवास में ।
ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबे कैलाश में ॥
ना मैं जप में, ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपास में ।
ना मैं क्रिया क्रम में रहता, ना ही योग संन्यास में ॥
Sunday, June 23, 2019
सपना झरना नींद का.
मेरे खेत, पहाड़, नदी
मुझे समाजवादी बनाये रखते है
नदी जिसका मिनरल पानी
सब पीते थे
सब जीते थे
सब स्वस्थ थे
तन से , मन से।
पहाड़ जो सभी को
आसरा देता था
पानी सहेजता था
फिर धीमे धीमे
बाट देता था
बिना किसी इश्तेहार
और सरकारी योजना के।
मेरे खेत जो देते थे
विषरहित देसी अनाज और सब्जी
जिन्हे छीनकर मुझसे
आज नेचुरल के नाम पर
चौगने दामों पर बेचा जा रहा है।
मेरे खेत जो आज भी
मेरी तिजोरी नहीं भर पाते
पर आत्मा और शरीर को तृप्त करते थे।
मै फिर भी कैपिटलिस्ट बना हूँ
इसीलिए नहीं की वो परफेक्ट सिस्टम है
या कि वो योग्यता के आधार पर तिजोरी भरता है
या कि वो पहले सप्लाई कम करता है
या कि वो पहले अच्छी आदते भुलाता है
या कि वो नयी बीमारिया ईजाद करता है
या कि वो पहले तोड़ता है फिर ख्वाब बेचता है ,
बल्कि इसलिए कि समाजवाद के ख्वाब देखने के लिए
मेरा भर पेट खा मखमली बिस्तर पर सोना जरूरी है।
मेरे खेत , पहाड़, नदी
मुझे मरने नहीं देते
सिस्टम की लसकती भुखमरी वासना
मुझे जीने नहीं देती।
लेकिन मेरे ख्वाब, जिसमे समाजवाद तितली की तरह लुभाता है ?
वो क्या है ?
शायद किसी और संसार में
किसी तितली का स्वप्न है
जिसमे वो मुझे देख रही है।
मुझे समाजवादी बनाये रखते है
नदी जिसका मिनरल पानी
सब पीते थे
सब जीते थे
सब स्वस्थ थे
तन से , मन से।
पहाड़ जो सभी को
आसरा देता था
पानी सहेजता था
फिर धीमे धीमे
बाट देता था
बिना किसी इश्तेहार
और सरकारी योजना के।
मेरे खेत जो देते थे
विषरहित देसी अनाज और सब्जी
जिन्हे छीनकर मुझसे
आज नेचुरल के नाम पर
चौगने दामों पर बेचा जा रहा है।
मेरे खेत जो आज भी
मेरी तिजोरी नहीं भर पाते
पर आत्मा और शरीर को तृप्त करते थे।
मै फिर भी कैपिटलिस्ट बना हूँ
इसीलिए नहीं की वो परफेक्ट सिस्टम है
या कि वो योग्यता के आधार पर तिजोरी भरता है
या कि वो पहले सप्लाई कम करता है
या कि वो पहले अच्छी आदते भुलाता है
या कि वो नयी बीमारिया ईजाद करता है
या कि वो पहले तोड़ता है फिर ख्वाब बेचता है ,
बल्कि इसलिए कि समाजवाद के ख्वाब देखने के लिए
मेरा भर पेट खा मखमली बिस्तर पर सोना जरूरी है।
मेरे खेत , पहाड़, नदी
मुझे मरने नहीं देते
सिस्टम की लसकती भुखमरी वासना
मुझे जीने नहीं देती।
लेकिन मेरे ख्वाब, जिसमे समाजवाद तितली की तरह लुभाता है ?
वो क्या है ?
शायद किसी और संसार में
किसी तितली का स्वप्न है
जिसमे वो मुझे देख रही है।
- Rahul Paliwal
Monday, April 29, 2019
चुनाव
जनता यहाँ हमेशा तमाशाबीन रही है और संघर्ष से मुँह चुरा मनोरंजन खोजती है। मुद्दों को तो जनता ने दरकिनार किया, नेता क्या करेंगे।
डिमांड और सप्लाई अपना काम दिखाता है।
भारत के चुनाव भी कुछ इसी तरह होते है। मनोरंजक।
ये चुनाव भी।
एक स्वाभाविक कॉमेडियन है. पूरी दक्षता और क्षमता के साथ कॉमेडी रचते है। बच्चे भी कई बार आश्चर्य में पड़ जाते है , ऐसा कौन करता है और कैसे कर लेता है भाई।
दूसरे कमाल के जादूगर, पूरा सर्कस रचते है. मायावी दुनिया में ले जाके अंगूठे से मदिरा चुसवा नशे का आभास करवाते है और जनता डिमो(DeMo) की जगह नशे में मोडी - मोडी बड़बड़ाती है।
लेकिन शशश। .......देश सो रहा है।
धीरे से बोलो - "मेरा भारत महान"। ...देश सो रहा है। ......कही उठ न जाये , नहीं तो कॉमेडियन और जादूगर भागते फिरेंगे और देश जात - पात - आरक्षण - अपराध , तुष्टिकरण ,कमीनापन, जनसख्या रूपक कैंसर , मुफ्तखोरी से हटकर इंसानियत, मेरिटोक्रेसी, प्राइड, थोड़े लेकिन अच्छे लोग , हैप्पीनेस इंडेक्स और sustainability अपना लेगा। एक हिन्दू प्राइड पहचान बनेगी और देश खुद अपने पैरो पर खड़ा होकर अनुसन्धान उन्मुखी प्रगति करेगा।
और मेरी नींद फिर खुल गई।
सपने अक्सर सोने नहीं देते है।
#JagteRaho
डिमांड और सप्लाई अपना काम दिखाता है।
भारत के चुनाव भी कुछ इसी तरह होते है। मनोरंजक।
ये चुनाव भी।
एक स्वाभाविक कॉमेडियन है. पूरी दक्षता और क्षमता के साथ कॉमेडी रचते है। बच्चे भी कई बार आश्चर्य में पड़ जाते है , ऐसा कौन करता है और कैसे कर लेता है भाई।
दूसरे कमाल के जादूगर, पूरा सर्कस रचते है. मायावी दुनिया में ले जाके अंगूठे से मदिरा चुसवा नशे का आभास करवाते है और जनता डिमो(DeMo) की जगह नशे में मोडी - मोडी बड़बड़ाती है।
लेकिन शशश। .......देश सो रहा है।
धीरे से बोलो - "मेरा भारत महान"। ...देश सो रहा है। ......कही उठ न जाये , नहीं तो कॉमेडियन और जादूगर भागते फिरेंगे और देश जात - पात - आरक्षण - अपराध , तुष्टिकरण ,कमीनापन, जनसख्या रूपक कैंसर , मुफ्तखोरी से हटकर इंसानियत, मेरिटोक्रेसी, प्राइड, थोड़े लेकिन अच्छे लोग , हैप्पीनेस इंडेक्स और sustainability अपना लेगा। एक हिन्दू प्राइड पहचान बनेगी और देश खुद अपने पैरो पर खड़ा होकर अनुसन्धान उन्मुखी प्रगति करेगा।
और मेरी नींद फिर खुल गई।
सपने अक्सर सोने नहीं देते है।
#JagteRaho
Friday, March 1, 2019
मेरा भारत फिर भी महान
नंगा राजा
तमाशाबीन
ताली ठोकती जनता
भूख भगवान है
तन मन बाजार
बास मारते आदर्श
क्रिकेट धर्म
क्रिकेटर हीरो
जब तक गोलिया सरहद
तक है
जब तक उन्हें झेलते सीने पडोसी के है
हमें क्या
NCC नहीं बेटा
वहा टाइम वेस्ट नहीं करो
क्योकि वहा तो डिसिप्लिन सिखाते है
वो क्यों चाहिए
क्रिकेट खेलो
टीवी पे आ जाओ किसी तरह
बड़ा दो माँ बाप का गौरव इस तरह।
ये टुच्चापन
हमारी आत्मा से आती बदबू है
घिन आती है
शांति पसंद राष्ट्र मेरा
गुलाम की करेंसी से ही सही
शांति ख़रीदेंगे
गुलाम होना
सब सहन कर लेना
पेट भरने के लिए
आत्मा बेचना
हमारा परिचय
इन्द्रिय जनित सुख, क्रिकेट धर्म
विकसित देश का वीसा
वास्तविक इन्फ्लेशन को अगूंठा दिखती
काले पैसे की पोषक
कुछ रियल एस्टेट
देश की पूंजी को
चाटते, बाटते, अपराधियों को पालते
और जमीं को आसमान तक महंगा करने वालो को पोषते
और NPA बनाते बैंक मैनेजर और उनके आका
ऐश करते है
फिर भी उन्ही बैंको मे
८% FD कराते समाजवादी मुर्ख
फिर अपने और बच्चो के लिए
एक बेहतर समाज और नौकरियों
की उम्मीद रखते है।
और हा
इन सब के बीच
अगर २६ जनुअरी
और १५ अगस्त
और उरी ,
और पुलवामा,
और कारगिल
और संसद हमला ,
और सम्झौता एक्सप्रेस हमला
और काबुल भारतीय दूतावास हमला
और २६/११ मुंबई
और १९६५ , १९७१ युद्ध
और सरहद
और सिज़ फायर में रोज मरते सैनिक
और अंत मे
फिर भी
आपको झेलता,
टूटता,
लड़खिड़ाता
जयचंदो से घाव खाता
फिर भी आपको सहजता
देश और सैनिक याद आ जाये
तो
भारत माता की जय
जय हिन्द।
मेरा भारत महान।
मत बोलना।
अच्छा नहीं लगता।
आईने देख कर
भीतर की सड़ांध देख लेना
और अपनी काहलियत
और बेबसी पर
फुट फुट कर रो लेना।
बस.
सुना है इस युग में
आंसू
गंगा की तरह पाप धोते है.
तमाशाबीन
ताली ठोकती जनता
भूख भगवान है
तन मन बाजार
बास मारते आदर्श
क्रिकेट धर्म
क्रिकेटर हीरो
जब तक गोलिया सरहद
तक है
जब तक उन्हें झेलते सीने पडोसी के है
हमें क्या
NCC नहीं बेटा
वहा टाइम वेस्ट नहीं करो
क्योकि वहा तो डिसिप्लिन सिखाते है
वो क्यों चाहिए
क्रिकेट खेलो
टीवी पे आ जाओ किसी तरह
बड़ा दो माँ बाप का गौरव इस तरह।
ये टुच्चापन
हमारी आत्मा से आती बदबू है
घिन आती है
शांति पसंद राष्ट्र मेरा
गुलाम की करेंसी से ही सही
शांति ख़रीदेंगे
गुलाम होना
सब सहन कर लेना
पेट भरने के लिए
आत्मा बेचना
हमारा परिचय
इन्द्रिय जनित सुख, क्रिकेट धर्म
विकसित देश का वीसा
वास्तविक इन्फ्लेशन को अगूंठा दिखती
काले पैसे की पोषक
कुछ रियल एस्टेट
देश की पूंजी को
चाटते, बाटते, अपराधियों को पालते
और जमीं को आसमान तक महंगा करने वालो को पोषते
और NPA बनाते बैंक मैनेजर और उनके आका
ऐश करते है
फिर भी उन्ही बैंको मे
८% FD कराते समाजवादी मुर्ख
फिर अपने और बच्चो के लिए
एक बेहतर समाज और नौकरियों
की उम्मीद रखते है।
और हा
इन सब के बीच
अगर २६ जनुअरी
और १५ अगस्त
और उरी ,
और पुलवामा,
और कारगिल
और संसद हमला ,
और सम्झौता एक्सप्रेस हमला
और काबुल भारतीय दूतावास हमला
और २६/११ मुंबई
और १९६५ , १९७१ युद्ध
और सरहद
और सिज़ फायर में रोज मरते सैनिक
और अंत मे
फिर भी
आपको झेलता,
टूटता,
लड़खिड़ाता
जयचंदो से घाव खाता
फिर भी आपको सहजता
देश और सैनिक याद आ जाये
तो
भारत माता की जय
जय हिन्द।
मेरा भारत महान।
मत बोलना।
अच्छा नहीं लगता।
आईने देख कर
भीतर की सड़ांध देख लेना
और अपनी काहलियत
और बेबसी पर
फुट फुट कर रो लेना।
बस.
सुना है इस युग में
आंसू
गंगा की तरह पाप धोते है.
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