बीड़ी फूकते हुए
कम्बल ओढे हुए
टेलीविज़न वा देखते हुए
जितवा बड़बड़ाया
ई शहर का लोग
स्टूडियो में टाई कोट पहेन के
गांव की समस्या की बात करते हुए
कितना गँवार (देहाती) लगता है बे।
Friday, December 14, 2018
Sunday, May 20, 2018
Friday, March 16, 2018
मेरे गॉव
अक्सर गॉव जाते है शहर
तलाशते है मकसद
भिड़ते लड़ते पीटते
खोते है खुद को
आहिस्ता आहिस्ता
मगर जब भी बारिशे
भिगोती है माटी को।
नम आँखों की बरसातों से
भीतर सौंधी खुशबु फिर महकती है।
गॉव फिर जिन्दा हो उठते है।
मेरे गॉव फिर जिन्दा हो उठते है।
तलाशते है मकसद
भिड़ते लड़ते पीटते
खोते है खुद को
आहिस्ता आहिस्ता
मगर जब भी बारिशे
भिगोती है माटी को।
नम आँखों की बरसातों से
भीतर सौंधी खुशबु फिर महकती है।
गॉव फिर जिन्दा हो उठते है।
मेरे गॉव फिर जिन्दा हो उठते है।
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