प्रिय राहुल, नेतागण और सभी पहले , दूसरे तीसरे , चौथे स्तम्भ।
हर मुद्दे पर विरोध नहीं होता, मेरे दोस्त। हर मुद्दे के दो पक्ष नहीं होते। कुछ मुद्दो पर एक ही पक्ष होता है , देश का पक्ष। देश के लिए शहीद, का पक्ष। देश की अवाम का पक्ष।
कुछ मुद्दो पर राजनीती की नहीं जाती , बल्कि उसे , सरकार और देश को मजबूत बनाया जाता हैं।
अफ़सोस , तुम्हे किसी ने ये बताया ही नहीं। राजनीती देश और अवाम को सशक्त बनाने का साधन हैं , स्वयंम कोई साध्य नहीं।
समय चूनौती देता है और अवसर भी। कोई भी मुद्दा हो, एक अवसर होता हैं , देश और समाज की दशा और दिशा देने और बदलने का। राजनीती सिर्फ विरोध नहीं हैं। राजनीती लीड करने और लीडर देने का नाम हैं।
हर गंभीर मुद्दा एक लक्षण हैं , कही कुछ बीमारी हैं। लेकिन , राजनीतिज्ञ उसे सिर्फ और सड़ाते हैं और सप्रेस करते हैं। और हमारा सस्ता , दो टके का मीडिया ? छोड़ो यार।
विदा करो और मुक्त करो इस देश को महापुरुषों के नामो से। जो चूनौतिया उन्हें दिखी , उन्होंने निर्णय लिए। समय की सापेक्षता के हिसाब से।
किन्तु समय परिवर्तित हैं। हम क्या कर रहे हैं ? हम ने कौन से निर्णय लिए ? हमने निर्णय के अवसरों को सिर्फ गवाया हैं। कभी किसी महापुरुष , कभी जाती , कभी धर्म , कभी गरीब के नाम पर। हर बीमारी के नए टिके ईजाद होते हैं , हम ये नहीं कहते उसी कंपनी का टिका जो ५० साल पहले बना , उपयोग करेंगे क्योकि वह कंपनी पूजनीय हैं। वह कंपनी भगवान बन मंदिर में बैठी हैं। फिर किसी व्यक्ति के लिए क्यों ?
पुराने टिके से नयी बीमारी ठीक नहीं होगी।
नए सवाल चाहिए और नए हल।
देश निर्णय से बनता हैं।
राजनीती करने से नहीं।
ये निर्णय के क्षण हैं।
समय साक्षी हैं।
अवाम अभी भी कल्कि की प्रतीक्षा में आँखे धुंधली कर नपुंसक खड़ी हैं।
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