आजादी और लाल बहादुर शाश्त्री के बाद, हर आन्दोलन, हर विरोध को एक नाम दे देकर राजिनितक मेनेजरो ने अपनों आकाओ को बहला कर, जनता को मुर्ख समझा और मुख्य धारा की सवेंद्शिलता, सामाजिकता और जमीनी सौद्श्यता की जननीति को लल्लो चप्पी की राजनीती से बदल दिया। कभी जे पी का नाम दिया, और अभी अभी अन्ना , फिर रामदेव औरफिर अरविन्द केजरीवाल का नाम दे दिया। तो जनता का आन्दोलन अरविन्द का बन गया, अन्ना का बन गया। फिर सभी स्विस अकाउंट धारक मीडिया में आये, और कहा जनता ही हिसाब करेगी, अरविन्द और अन्ना कौन होते हैं। अरे वाह : इस रामबाण ने काम किया, और चाटुकारों (राजनैतिक मैनेजर ) को प्रमोशन मिला। ये अलग बात हैं, वो रामबाण, हमेशा की तरह जनता को लगा। लेकिन साहब क्या करे, कल ऑफिस जाना हैं , बीवी बच्चो का पेट भरना हैं, नेता - भू माफिया ने जो 1000 स्क्वायर फीट के सर छुपाने की जगह को, सपना बना कर, सपना, आसमानी कीमतों पर बेचा, उसे अपने कॉमन सेंस को अलग रख, ख़रीदा और फिर शुरु हुआ मासिक किस्तों का दौर। सड़के नहीं बनी, कोई बात नहीं। 20 साल से मेरे गाँव में बिजली 4-6 घंटे मिलती हैं, कोई बात नहीं, 30,000 किसान आत्महत्या करते हैं, तो क्या। कोई युवा किसान अपने हाथो से केले की अपनी फसल को मंडी में 2-3 रुपये किलो ने बिकते देख, नष्ट कर देता हैं, तो क्या। और फिर हमारे नेताओ की असीम भूख पैसो की, भ्रष्टाचार के बारे में अब और क्या ससबुतन देखे? मुझे कोई बता रहा था, एक प्रदेश का सीऍम सीधे RTO पोस्टिंग के लिए पैसा लेता हैं। और फिर सिस्टम को इतना लकवा ग्रस्त कर दो की, बिना पैसो के काम न हो, तो अब जनता भी भ्रष्टाचारी, तो कैसे कोई कांच के घर वाला पत्थर मारेगा ? इसे तिल तिल के मारना कहते हैं , जनाब ।
कोई सरोकार ही नहीं रहा इन लोगो को। तुम कल मरते हो , आज मरो। और मौन मोहक जी उवाच करेंगे, अब ऐसा न हो। कल फिर होगा, फिर वही, अब ऐसा न हो। भारत भाग्य विधाता, जो हुआ उसका हिसाब किताब कौन देगा? आप अर्थशाष्त्री हो ना? एकाउंट्स और एकाउंटेबिलिटी समझते है ना? हम उसी के बारे में बात कर रहे है, सर।
पर आपको एक नया ज्ञान समझाया गया, बहुदलीय सत्ता की मजबूरी की राजनीती। अब आप तो राजनीती समझते नहीं, इसलिए जैसा सिखाया गया, आपने सच समझ लिया। श्रीमान हम इसे blackmail की सत्तानिती कहते हैं। आप किसी भी दलाल को, क्योकि वो दारू की बोतल बाट कर, तथाकथित रूप से चुन कर आया, इसलिए सपोर्ट ले लेते हो, बल्कि उचे पद भी बात देते हो, अब उनसे हम तो छोड़े, आप कोई उम्मीद रखते हो?
इसलिए जनता ने इसबार उलटवार किया। ठीक हैं साहब, आप कोई नाम नहीं चाहते, कोई बात नहीं। इस बार हम बेनाम आयेंगे। बूढ़े, लाचार हैं, आप परवाह नहीं करते। कोई बात नहीं। नौकरीपेशा मासिक क़िस्त से झुके हुए, टूटे हुए हैं और चतुर (श्याना / cunning ) बन गए हैं। कोई बात नहीं। रही बात नए खून की, हा इससे खतरा हैं। चलो इन्हें पब दे दो, मस्ती मंत्र दे दो, कूल dude बना दो।, फेसबुक, ट्विटर दे दो। lol करते रहेंगे। फेसबुक में कोई dislilke (नापसंद) तो होता नहीं। बस यही गलती हो गई साहब, बस यही वाट लग गई।
मैं अपने दोस्तों से हमेशा कहता हूँ, गर उम्मिदे जिंदा हैं तो यही नया खून कुछ करेगा, हालाकि थोडा निराश था, की कही ये युवा, मस्ती मंत्र में उलझ कर न रह जाये।
लेकिन साहब, नया खून और मासुमता तो जोर मारेंगे। वो घर नहीं बैठेंगे, वो अगर ट्विट करते हैं तो ट्रेन्ड भी देखते हैं। वो ज्यादा गुणाभाग नहीं करते। सच तो सच, वरना गलत। कोई किसी कॉर्पोरेट का, सिविल सर्विस का, ंMBA का इंटरव्यू हैं क्या? जो लेदेकर बैलेंस नजरिये को लादेंगे। नहीं साहब, नहीं। बहुत हो गया ब्रेन वाश।
तो साहब इस बार राजपथ पर, विजय चोक पर और इंडिया गेट पर युवा आया (सिर्फ उम्र से नहीं), जनता आई। आप कहते हैं न संसद में, बड़ी चालाकी से, की "जनता तय करेंगी"। और शब्दों के बीच आप ये कहना चाहते की, जनता को तो हम मैनेज कर लेंगे चुनावो में। इस बहुत बड़े देश में, बहुत मुद्दे हे यार, जाति के , धर्म के, आरक्षण का। बाट देंगे। सफ़ेद अंग्रेज सिखा कर गए ही हैं।
तो लो साहब, जनता आ गई। बगेर कोई नाम लिए, चाहे छोटा भाई बहन खड़ा हो पास में, नहीं बताएँगे, नहीं तो आप हमारा परिवारवाद का आरोप हम पर ही लाद देंगे। नहीं, ये जनता हैं, वही जिसे आप अपना मालिक कहते हैं। और इस बार कोई नाम नहीं। आपको कोई चेहरा नहीं चाहिए न? लो कोई चेहरा नहीं।
और न होने, का चमत्कार देखिये। सारे राजनैतिक मेनेजर, गधे के सिंग की तरह गायब हो गए। सीधे जो निर्णय ले सकता हैं, अब उसी से बात।
लेकिन हुक्मरान फिर गलती करेंगे, वो इसे सिर्फ इस ज्वलंत मुद्दे से जोड़ेंगे। उन्हें समझना होगा, बात समग्र होनी चाहिए। अब और मत देरी करो। अब और आँखों की चमक को खोने मत दो। आपको इस देश का लीडर बनना होगा, मेनेजर नहीं। जो ट्रस्ट डेफिसिट आपने पैदा किया हैं, उसे वापस लाना होगा। अब सर्दी की सिरप नहीं, कैंसर की सर्जरी चाहिए। सब कुछ सड़ांध हो मर रहा हैं। गर ये समझे तो ये जनता आपको अवसर देगी अपने प्रतिनिधत्व का। नहीं तो असामयिक कर देगी आपको। अंडर करंट बहुत तेज हैं, और आंखे मूंदकर आप धृतराष्ट्र तो बन सकते हैं, लेकिन भारत नहीं जीत सकते, महाभारत नहीं जीत सकते। इस महाभारत में दो ही पक्ष हैं। आप बताये, और हर किसी को तय करना होगा, आप किस तरफ हैं। नहीं तो पडोसी के बाद आपकी बारी भी आएगी। आप बैठ कर, निष्पक्ष हो कर, अपने आपको को नपुंसक ही साबित करोंगे। आपकी पीढ़िया आपसे वही सवाल करेंगी, जो देश आज हुक्मरानों से कर रहा हैं।
दिनकर साहब ने अपने गरम खून से लिखा हैं:
मिटटी सोने का ताज पहन, इठलाती हैं।
सिंहासन खाली करो, कि जनता आती हैं।
--एक आम आदमी।