बहुत दिनों से ब्लॉग पर सुखा पड़ा था, सोचा कुछ बुँदे के साथ ही सही, मानसून का स्वागत तो किया जाये. मौन के कुछ पलों में, कुछ उतरा, उसे ही लिख देता हूँ.
---*** मौन ही बेहतर प्यार की भाषा. ***---------
भाषा - बोली यही आ सीखी.
बोला वही, जो बात तुझमे दिखी.
तुने क्या समझा, मैंने क्या कहा.
बोली का धोखा, हमेशा रहा.
दिल ही दिल की समझे परिभाषा.
मौन ही बेहतर प्यार की भाषा.
आज इतना ही.
राहुल.
Saturday, June 18, 2011
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