जगजीतसिंह की गुनगुनायी एक ग़ज़ल याद आ रही है.
वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से.
किसको मालूम कहा के है, किधर के हम है.
Nida Fazli’s soulful lyrics...awesome....
Today started the day, and decided will do this, this and that, but end of day found that could not finish anything completely. Don't you think LIFE too is same that way. We start and decide will do this this and that but when we look back, we found that could not do anything which is meaning full and this is how life passes away. In fact passed until.
कहने को कुछ नहीं है खास, वक़्त इस कदर खाली क्यों है.
कर नहीं पाता फुलों और काँटों में भेद, चिंता में बैठा यूँ माली क्यों है.
ये कैसा वक़्त है, ये कैसी राहें है...
दिखता तो है सब कुछ है पास, पर ये उदासी क्यों है.
आखिर ये गहरी उदासी क्यों है?
आज बस इतना ही.
Love
Rahul
Love
Rahul
No comments:
Post a Comment
Do leave your mark here! Love you all!