ख़ामोशी में ये कैसा शोर हैं।
शोर में ये कैसी ख़ामोशी हैं।
आँखों में ये कैसा, पानी हैं।
होंठो पर ये कैसी हंसी हैं।
अमृत भी पीना हैं,
मर मर कर जीना हैं।
जहर भी पीना हैं।
जी जी कर मरना हैं।
होश में ये कैसी बेहोशी हैं।
बेहोशी में एक अजीब सा होश हैं।
कोई कहता, सदा तुम हो।
कोई कहता खानाबदोश हैं.
ख्वाइशों में ये कैसी नफरत हैं।
नफ़रतो मे ये कैसी ख्वाइश हैं।
जमीर का पर्दा नंगा करके।
जख्मो की कैसी नुमाइश हैं।
ये कैसा वक्त हैं।
कमबख्त हैं।
अरमानो को ज़हर देकर।
नोच लो वजूद को।
टुकड़ो में बाट दो, हाड मांस को।
न्योता दे दो, गिद्धों को।
तेरे जीने का कोई मतलब नहीं।
तेरे इंसा होने का, कोई मतलब नहीं।
Sunday, April 24, 2016
Tuesday, April 12, 2016
श श..भारत गहरी नींद में सो रहा हैं।
श श श श श श श..... भारत गहरी नींद में सो रहा हैं। या यूँ कहा जाये, सोने का नाटक कर रहा हैं। और सब शामिल हैं। ज्ञानी, अज्ञानी , मुर्ख, राजा , प्रजा , शिक्षक, रक्षक , न्यायविद। कृपया आप भी सो जाये.
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