कहानी मुझे लगता हैं सभी को बहुत पसंद होती हैं. शब्द कम, समझ ज्यादा. कठिन परिस्थतियो को भी सरलता से समझा और सुलझा सकती हैं कहानिया. वो हमारा साहित्य से पहला प्यार हैं. और पहला प्यार जीवन भर याद रहता हैं :-). चलिए वापिस आइये. ...तो कहानी हमारे पुरातन ज्ञान और विवेक को बड़ी सहजता पीढ़ी दर पीढ़ी ले जाती हैं. आज के न्यूक्लियर परिवार के बच्चे उनसे महरूम हैं. और अब सिर्फ एक अंतहीन दौड़ हैं लक्ष्मी के पीछे जो कही पहुचती नहीं.
खैर..एक कहानी पढ़ी खुशवंत सिंह के एक लेख में. मुझे उन्हें पढना अच्छा लगता हैं. दिल से और साफ - साफ. एक सरदार की तरह...विपिन बख्शी की अनुमति लेना चाहता हूँ, इस बहुत सार्थक और सामयिक कहानी को यहाँ अपने दोस्तों के साथ साँझा करने के लिए..चलिए सुनते हैं...एक जंगल में........................................:-)......
_____________________प्रधानमंत्री बनाम बैंकर _____________________________________
देश के प्रधानमंत्री अपना एक चेक भुनाने बैंक में गए। कैशियर के करीब जाकर उन्होंने कहा : ‘गुड मॉर्निंग मैडम, क्या आप यह चेक भुना सकती हैं?’ कैशियर ने कहा : ‘बड़ी खुशी से, सर? क्या आप मुझे अपना आईडी दिखाएंगे?’
प्रधानमंत्री हैरान रह गए। उन्होंने कहा : ‘देखिए मैडम, मैं अपने साथ अपना आईडी तो लाया नहीं हूं, क्योंकि मैंने सोचा भी न था कि मुझसे आईडी मांगा जाएगा। शायद आपने मुझे ठीक से पहचाना नहीं। मैं देश का प्रधानमंत्री हूं।’
कैशियर ने कहा : ‘जी सर, मैं आपको भलीभांति पहचानती हूं, लेकिन नियम-कायदों का तकाजा यही है कि आप मुझे अपना आईडी दिखाएं, नहीं तो मैं आपकी कोई मदद नहीं कर पाऊंगी।’
प्रधानमंत्री ने कहा : ‘मैडम, बैंक में इतने सारे लोग मौजूद हैं। सभी मुझसे पहचानते हैं। आप किसी से भी पूछ लीजिए। मेरी पहचान किसी से भी छुपी नहीं है।’
कैशियर ने कहा : ‘देखिए सर, आप मेरी बात ही समझ नहीं पा रहे हैं। सवाल पहचान का नहीं है। सवाल बैंक के नियमों का है। मैं नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकती।’
अब प्रधानमंत्री ने याचना की मुद्रा में कहा : ‘मैडम, मैं आपसे अनुरोध करता हूं। मुझे पैसों की सख्त जरूरत है।’
कैशियर ने कहा : ‘देखिए, आपको अपनी पहचान तो सिद्ध करना ही होगी। कुछ दिन पहले एक योगगुरु आए थे। अपनी पहचान सिद्ध करने के लिए उन्हें कुछ योगासन करके दिखाना पड़े थे। फिर उसके बाद बाएं हाथ के एक धुरंधर बल्लेबाज आए थे। उन्हें अपनी पहचान सिद्ध करने के लिए छह गेंदों पर छह छक्के लगाकर दिखाना पड़े थे। यदि आप भी अपनी पहचान सिद्ध कर पाएं तो हम आईडी के बिना भी आपको फौरन भुगतान कर देंगे।’
प्रधानमंत्री सोच में पड़ गए। थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा : ‘मैडमजी, देखिए मुझे कुछ नहीं सूझ रहा है। मुझे बिलकुल भी अंदाजा नहीं है कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए।’
कैशियर ने कहा : ‘ठीक है, ठीक है। अब और कुछ कहने की जरूरत नहीं। इससे सिद्ध होता है कि आप ही देश के प्रधानमंत्री हैं। बताइए महोदय, आपको कितने पैसों की दरकार है?’
Note: With thanks to Dainik Bhaskar (source: http://goo.gl/dCzsI)
Sunday, December 11, 2011
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