रोज कई सवाल पूछता हैं, मुझसे रूठा सा रहता हैं.
सुबह सुबह आईने में, एक शख्श रोज मिलता हैं.
कहता हैं कुछ अपने गिले शिकवे.
कुछ मेरी सुनता हैं.
हसता हैं कभी मेरे साथ,
चुपके से अक्सर रो भी लेता हैं.
भीड़ के बीच के सन्नाटे में, इतना तो सुकून हैं.
हर पल वो मेरे साथ रहता हैं.
रोज कई सवाल पूछता हैं, मुझसे रूठा सा रहता हैं.
सुबह सुबह आईने में, एक शख्श रोज मिलता हैं.
Sunday, September 25, 2011
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