आज मेरी बस्ती में,
फिर एक घटना दोहराई जायेगी.
रावणो की भीड़,
एक अकेले पुतले को जला आएगी.
आज दशहरा है.
वो पुतला पूछता है अगर में रावण हू,
तो एक ही पाप की इतनी बार सजा क्यों?
पर भीड़ सुनती कहा हें,
अपने ही पापो की सजा, पुतले को दे आएगी.
.................रावणो की ये भीड़
एक अकेले पुतले को जला आएगी.
राम और रावण कही बाहर नहीं,
स्वयं मनुष्य के भीतर है.
बाहर तो मनुष्य,
हर दशहरे पर रावण समझ,
पुतला जला आता है,
किन्तु भीतर अन्दर कही,
हर रोज रावण, राम को हरा देता है.
अन्दर ही अब हर मनुष्य में,
हर रोज दशहरा होना चाहिए.
राम की जीत
और भीतर का रावण पराजीत होना चाहिए.
श्रींराम की जीत, और रावण पराजीत होना चाहिए.....
अंत में मेरे देश की उत्सवप्रियता को प्रणाम!
आज इतना ही.
प्यार
राहुल.