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Monday, April 12, 2010

क्या आप मेरा कार्टून "लगा" देंगे?



अपनी चार साल की बेटी को जब चैनल्स की लड़ाई में जब मैने ये कहकर कनविंस करने की कोशिश की, कि ये जो चैनल्स में हॉस्पिटल दिखा रहे है, उस बिजनेस में अगर हम पैसा "लगा" देंगे तो वो दोगुना हो जायेगा. लेकिन मेरी बेटी मुझसे ज्यादा स्मार्ट इन्वेस्टर निकली. उसने डील करने कि कोशिश की., कहा---पापा अगर मै अपने गुल्लक के सारे पैसे "लगा" दूंगी तो क्या आप मेरा कार्टून "लगा" देंगे? मैं लाजवाब था और हमेशा की तरह ये डील (या "दिल" कहे)  भी हार गया.  :)

Wednesday, April 7, 2010

कुछ सवाल जिंदगी से

**********कुछ सवाल जिंदगी से*************
खुद से ही खुद को इतनी गिंला क्यों हैं?
                   यहीं हैं ग़र जिंदगी का तो यूँ सिलसिला क्यों हैं.?
कितना खुबसूरत था आगाज़, ये राह मैं क्या हुआ?
                  रंगबिरंगी सुबह थी, ये दोपहर हो क्या हुआ?
अभी तो थी खुशहाल सी महफ़िल
               अब इतना अकेलापन क्यों हुआ?
भीतर छाया ये मनहूस सन्नाटा क्यों हैं?
यहीं हैं ग़र जिंदगी का तो यूँ सिलसिला क्यों हैं.?
              खुद से ही खुद को इतनी गिंला क्यों हैं?
यहीं हैं ग़र जिंदगी का तो यूँ......................

Sunday, April 4, 2010

तुम मिलों तो सही

तुम मिलों तो सही. अ ग्रेट रिफ्रेशमेंट treat to oneself. मैं उसे *****  रेटिंग देता हूँ. अ must watch फॉर the people who want to have some thing simple, straight, usual and at ground level. मुझे बहुत पसंद आया सुब्बू (नाना पाटेकर) का किरदार. ये किरदार (दलनाज़, फच्छा etc) वैसे ही जिन्दंगी का हिस्सा बन सकते है जैसे बहुत पहले नुक्कड़ के किरदार बने थे.

ये मूवी एक इशारा उधर भी करती है जहा हम अपनी मानवीयता खोकर मशीन बनते जा रहे है. लोग कहते है एक दिन मशीन मानवों पर कब्ब्जा कर लेगी, मै कहता हु वो कब्ब्जा कभी से शुरू हो चुका है. आप किसी माल में जाइये सभी sales person आपको imotionless asnwering machines लगेगी. आप किसी सर्विस provider के कस्टमर केयर को फ़ोन लगाईये, ये सब machines ही है. मुझे आज भी वैसी छोटी सी दुकान पर जाना अच्छा लगता है जिसका मालिक मुझे मानवीय तरीके से व्यव्हार करता हो, जो मेरी पसंद जनता हो. जो मुझे नई आई हुई चीजे अपनी आँखों में एक चमक लाके बताना पसंद करता हो. जो मेरी बच्चे को उनके नाम से जनता हो और उन्हें प्यार देना जनता हो, चाहे एक orange कैंडी देकर ही. और हाँ जो मुझे बिल पे करने के बाद भी बाते करने में इच्छित हो.
यही सभी छोटी छोटी सी बाते मिलकर तो हमारी जिन्दंगी बनती है. और इन्ही चीजो से हम वस्तुत: खुश रहते है और एक स्वस्थ एवं उत्साह भरी लम्बी जिन्दंगी जीते है. यकीन मानिये पैसे से नहीं.

मुझे पारसी भी किसी एक फतासी मूवी की कहानी का मानवीय पात्र लगते है जिनका machines खात्मा करती जा रही है. मानव के मशिनिकरण पर मुझे इक इंग्लिश मूवी THE INVASION याद आती है. तो क्या हम पर भी किसी ALIEN VIRUS ने हमला किया हुआ है. संभावना दिखती तो है आज कल के इंसानों को देखकर.

खैर मुझे पारसी लोगो से बड़ा प्यार है, और मुझे पक्का यकीन है आप भी रतन टाटा को सम्मान और प्यार देते होंगे. ये लोग अभी भी मानवीय है और मुंबई अगर आपको अच्छा लगता है तो उसका इक कारन ये लोग भी है. इन्हे और इनकी संस्कृति/ properties को बचाया जाना चाहिए. आखिर सभी जगह इक माल और concrete का जंगल खड़ा कर के हम अपने आप को ही नष्ट करते है.

तो मेरे/आपके  मोहल्ले./ कॉलेज की काफ़ी-चाय की छोटी सी दुकान की छोटी सी दुनिया से प्रेरित फिल्म  है. "तुम मिलों तो सही".

इशारे और भी कई है लेकिन आज इतना ही सही.


प्यार.
राहुल