बहुत से दोस्त पूछते है, क्यों ? क्यों लिखता हूँ।
ये आपका धंधा नहीं है, फिर क्यों ? none ऑफ़ योर बिज़नेस।
बस वही से, इसी सोच से - हर मूढ़ता को जीवनदान मिलता है।
हमने अपनी अपनी लकीरे खींच अपने आपको पिंजडो में बंद कर लिया है.
और हर एक ने बहुत खूबसूरत नाम दे दिए है उसे।
कोई हिन्दू कहता है, कोई मुस्लिम, कोई जैन, कोई भाषा पर ,कोई जात पर, कोई धंधे पर , कोई सरकारी नौकरी पर, कोई पार्टी और न जाने क्या क्या।
ये तो कोई आइडेंटी क्राइसिस है मानव जात पर।
इन पिंजरों से आज़ाद होना - मनुष्य होने के साथ न्याय है।
न्याय पृथ्वी पर खोजा गया सबसे सुन्दर अमूर्त विचार है।
न्याय समानुभूति की सामाजिक डिज़ाइन है। उत्तरदायित्व है।
मेरे लिए किसी एक पिंजरे में बंद होना जीवन के साथ अन्याय है जो अपना दायरा बड़ा सामाजिक अन्याय में बदल जाता है।
मेरे लिए अंधे बने रहना देश द्रोह है।
मेरे लिए भय, लालच देश द्रोह है।
मेरे लिए स्वार्थी होना देश द्रोह है।
मेरे लिए चुप रहना देश द्रोह है।
पुनर्जन्म में विश्वास रखने वाला देश इतना भयभीत नहीं हो सकता , ये पाखंड है।
"क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे? मुंशी प्रेमचंद मुझे दिखाई देने लगते है।
जब आप पिंजरों से बाहर निकलते है - ऊर्जा के तल पर आप उचाईयो को छूते है। तब आपको मुंशी समझ आते है , सुन तो आपने बहुत कुछ रखा है।
तब आपको वो हस्तिया दिखाई देने लगती है - सच को आप अमूर्त स्वरुप में पहचानते है।
प्रेमचंद ने भी वही सूरज देखा - वही सच देखा।
न्याय को उन्होंने भी पंच परेमश्वर में ईश्वरत्व के साथ जोड़ दिया। ईश्वर नहीं , ईश्वरत्व।
सच का साथ देता हर इंसान , न्याय पर खरा उतरता है वही ईश्वर का दर्शन है, ईश्वरत्व है , और कही कोई ईश्वर नहीं बैठा है आपके लिए।
खाला अलगू से पूछती हैं कि क्या वे जुम्मन से अपनी दोस्ती बिगड़ने के डर से न्याय नहीं करेंगे?
यही वो पिंजरा है , यहाँ इसका नाम दोस्ती है। कितना खूबसूरत नाम है न ?
मैंने भी कई दोस्तों को जाते हुए देखा,बड़े-बड़े नाम और ऊँचे ओहदे वालों को, पर न्याय के ख़िलाफ़, एक पल भी मित्रता का बोझ नहीं उठाया।
मेरे लिए चुप रहना - न्याय द्रोह है।
न्याय द्रोह - आपका मनुष्य होने से इंकार है।
आज इतना ही।
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