2015 में छोटे भाई को १६ सूत्र लिखे थे. देखने वाली आँखें बहुत आगे तक देख सकती है, सिर्फ़ संस्कार के जाले काटने का साहस चाहिए. किंतु हम सब अपने सोने के पिंजरे में ही रहना पसंद करते जिसके दरवाज़े भी खुले है. खुला आसमाँ हमे भयभीत करता है. स्नेह के लिए जिगरा लगता है, मोह के लिए बायोलॉजिकल रिश्ता. किसी और के लिये कर गुजरना एक सभ्य और संभ्रांत समाज की एकमात्र पहचान है. हम सबमें बरगद बनने की क्षमता है, हम बोनसाई बन दुनिया रिंझा रहे है. अब उम्र के इस पड़ाव पर सब भाई ही है, इसीलिए ये सूत्र आपके लिये मेरा स्नेह है. वसुधैव कुटुंबकम्!!! आज इतना ही.
Sunday, June 2, 2024
वसुधैव कुटुंबकम्
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