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Sunday, January 18, 2015

जड़ो से जुड़े रहने के मायने।


तुम मिया, गलत करते हो। 
सही सवाल पूछते हो। 
पर गफलत करते हो। 

जड़ो से जुड़े रहने के मायने। 
मौसमो से नहीं पूछे जाते। 
इस रंग बदलती दुनिया में। 
आज, गिरगिट भी शर्मशार हो जाते। 

ये प्रश्न उनसे पूछो। 
जो चिडिओ को दानापानी रखते हैं। 
बुजर्गो की निशानियाँ संभालते हैं। 
तिजोरिओ में मोती न हो मगर। 
आँखों में दूसरे के दर्द के अश्क रखते हैं। 

तुम मिया, गलत करते हो। 
सही सवाल पूछते हो। 
पर गफलत करते हो। 

जड़ो से जुड़े रहने के मायने। 
गर पूछना ही हैं। 
तो जाकर किसी बरगद के पेड़ से पूछो। 
वो भी चलता हैं, मियां, "आगे बड़ विकास" भी करता हैं। 
पर जड़े जमा कर चलता हैं। 
बना के रखता हैं, अस्तित्व से संपर्क।

तुम मिया, अक्सर गलत करते हो। 
सही सवाल पूछते हो। 
पर गफलत करते हो। 

-राहुल 

कितनी निर्दयी हो तुम.
















कभी रेत के मानिंद, मुट्ठी से फिसलती हो।
कभी गले लगाती हो।
कितनी निर्दयी हो तुम.
ऐ जिंदगी, क्यों सताती हो.

तुम माशूक की तरह हो।
सामने होती हो, वक्त को अक्सर रोक देती हो।
कोई गम नहीं, जब साथ नहीं।
टीस तब उठती हैं, जब तुम याद आती हो.

कितनी निर्दयी हो तुम.
ऐ जिंदगी, क्यों सताती हो.

बसंत की अंगड़ाई लेती दोपहर।
दूर कही, रेडियो पर, कोई गजल।
हवा का छु कर गुजरना।
और पत्तियों की सरसराहट।
दिल बैठ सा जाता हैं।
वक्त को थाम लेने का मन करता हैं।
पर रूकती कहा हो तुम।
बीतती जाती हो।

कितनी निर्दयी हो तुम.
ऐ जिंदगी, क्यों सताती हो.

-राहुल