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Wednesday, April 7, 2010

कुछ सवाल जिंदगी से

**********कुछ सवाल जिंदगी से*************
खुद से ही खुद को इतनी गिंला क्यों हैं?
                   यहीं हैं ग़र जिंदगी का तो यूँ सिलसिला क्यों हैं.?
कितना खुबसूरत था आगाज़, ये राह मैं क्या हुआ?
                  रंगबिरंगी सुबह थी, ये दोपहर हो क्या हुआ?
अभी तो थी खुशहाल सी महफ़िल
               अब इतना अकेलापन क्यों हुआ?
भीतर छाया ये मनहूस सन्नाटा क्यों हैं?
यहीं हैं ग़र जिंदगी का तो यूँ सिलसिला क्यों हैं.?
              खुद से ही खुद को इतनी गिंला क्यों हैं?
यहीं हैं ग़र जिंदगी का तो यूँ......................

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